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________________ चरित्रं सूरचंद्र // 5 // :-MAHAGAPA // 5 // सापराधा अपि प्रायो गेहिभिः पुण्यदेहिभिः / न हन्तव्यास्त्रसास्तावकि पुनस्ते निरागसः॥१८॥ अर्थः-पवित्र शीरवाळा गृहस्थोए तो अपराधी त्रस जीवोने पण हणवा जोइये नही, त्यारे तेवा निरपराधी जीवो माटे तो कहेज शृं? // 18 // इत्यादिदेशनां कर्णदेशनान्दी निशम्य सः / प्रपद्य करूणामेवं स्वगिरा प्रत्यपद्यन // 19 // अर्थः-पोताना] कर्णभागने आनंद आपनारी इत्यादि देशना सांभळीने ते चंद्रे जीवदयाने स्वीकारीने पोताना वचनथी नीचे | मुजब अंगीकार कयु.॥ 19 // मयापराधिनोऽप्युच्चैरुपरोधेऽपि च प्रभोः / जन्तवो हन्त हन्तव्या नान्यतः शौर्यवृत्तितः // 20 // अर्थः-मारे म्होटा अपराधी जीवोने पण, स्वामिनो आग्रह छतां पण, तेम बीजी कोइ सुभवृत्तिथी पण, अरेरे! जीवोने | मारवा नही. // 20 // इत्यात्तनिश्चयश्चन्द्रो नत्वा सत्त्वगुरुर्गुरून् / पुरे तत्रैव धात्रीशं जयसेनमसेवत // 21 // ___अर्थः-एरीते निश्चय करीने महापराक्रमी ते चंद्रकुमार ते गुरुमहाराजने वांदीने तेज नगरमां (त्यांना) जयसेन नामना राजानी | सेवा करवा लाग्यो. // 21 // शौचसत्यौचितीदाक्ष्यदाक्षिण्यादिभिरभुतैः / निजैः सेवागुणैरेवाभवद्भर्तुरयं प्रियः // 22 // अर्थः-पवित्रता, सत्य, उचितता, चतुराइ तथा दाक्षिणता आदिक पोताना अद्भुत मेवागुणोथी ते राजाने प्रिय थइ पडयो // 22 // R-78A-A - SALOCA Rece
SR No.600421
Book TitleSurchandra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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