________________ सूरचंद्र चरित्र // 4 // +4%AECIFSCA // 4 | पछी ते यूथमा रहे छे? // 12 // एवं विचिन्त्य निस्तन्द्रश्चन्द्रः सान्द्रपराभवः / अचलद्गलितस्नेहः स्वगेहान्निश्यलक्षितः // 13 // अर्थः-एम विचारीने. अत्यंत दुभायेलो ते चंद्रकुमार (कुटुंबप्रते) स्नेहरहित थइने रात्रिए कोइने जणाव्याविना छुपीरीते पोताने | धेरथी सावधान थयोथको चाली निकळ्यो. // 13 // चित्तावेशहृतक्लेशः स्वदेशत्यागरागभृत् / कुमारः सुकुमारोऽपि दूरे देशान्तरेऽविशत् // 14 // अर्थः--हृदयना उत्साहथी दूर थयेल छे क्लेश जेनो, अने पोताना देशनो त्याग करवामां आनंद मानतो, एवो ते चंद्रकुमार सुकुमाल छतां पण दूर देशांतरमा दाखल थयो. // 14 // . . ... . रत्नपत्तनमित्यत्र पत्तनं विद्यतेऽद्भुतम् / तदुद्यानसमीपेऽस्थाचन्द्रः श्रान्तस्तंरोस्तले // 15 // अर्थ:-हवे अहीं रत्नपत्तन नामर्नु अद्भुत नगर छे, तेना उद्यानपासे आवेला एक वृक्षनी नीचे थाकी गयेलो ते चंद्रकुमार बेठो. श्रुतिपेयं स्वरं श्रुत्वा ततस्तदनुसारतः / विशनाराममद्राक्षीचन्द्र साधु सुदर्शनम् // 16 // ... अर्थः-पछी कर्णमा सांभळवा लायक ध्वनि सांभळीने, तेने अनुसारे ते उद्यानमां दाखल थतां ते चंद्रे सुदर्शननामना मुनिने जोया. सभागर्भावनौ नत्वा तत्त्वार्थादेशकं मुनिम् / तन्मुखादिति शुश्राव स धर्म भावपावनः // 17 // अर्थ:-सभानी वचली भूमिमा [बेसीने] तत्वार्थनो उपदेश देता ते मुनिराजने नमीने, तेमना मुखथी पवित्र भाववाळो ते | चंद्रकुमार नीचेमुजब धर्मदेशना सांभळवा लाग्यो. // 17 // - - MSCRED --