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________________ 8 सरचंद्र // 3 // % A KARE तन्दनौ सूरचन्द्राख्यौ तस्याभूतां मतौ सताम् / सूरचन्द्राविवोनिद्रानन्दं कर्तुमिदं जगत् // 8 // अर्थ:-आ जगतने प्रगटरीते आनंद करवाने सूर्य अने चंद्रसरखा, अने सज्जनोने माननीक एचा, ते राजाने सर भने चंद्र | नामना वे पुत्रो हता. // 8 // ज्येष्ठे श्रेष्ठगुणभ्रान्त्या विभ्राणः स्नेहविभ्रमम् / स तस्मै सूनवे राजा युवराजपदं ददौ // 9 // अर्थः-म्होटामा उत्तम गुणो होय, एवी भ्रमणाथी तेपर स्नेहविलासने धारण करनारा ते शत्रुजयराजाए ते मूरनामना तु पुत्रने युवराजनी पदवी आपी. // 9 // चन्द्रस्य तु महीन्द्रेण न वृत्तिरपि निर्ममे / ततः स चिन्तयामास स्वावासशयनो निशि // 10 // ____ अर्थ:-चंद्रनामाना ते न्हाना पुत्रनी तो राजाए कई आजीविका पण करी आपी नही, तेथी पोताना आवासमां मूतो मूतो ते रात्रिए विचारवा लाग्यो के, // 10 // सूरोऽद्य विदधे राज्ञा युवराजः स्वयं मुदा / न पत्तिरप्यहं वृत्या पितुर्मोहः कियानहो // 11 // अर्थः-राजाए पोते आजे हर्षथी मरने तो युवराज बनाव्यो, अने मने आजीविका जेटलं पण न आप्यु. अहो! पिताजीनी केटली गेरसमज छे ? // 11 // - पराभूतस्य तद्राज्ञा स्थातुं मेऽत्र न युज्यते / कलभः किं वसेयूथे यूथेशेनापमानितः // 12 // अर्थः-माटे राजाए तिरस्कारेला एवा मारे अहीं रहे, लायक नथी, केमके यूथनायकथी अपमान पामेलो युवान हाथी शुं A - CA
SR No.600421
Book TitleSurchandra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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