________________ %A सूरचंद्र चरित्रं FAॐC // 8 // // 8 // -ॐॐॐ अध्यक्षमगरक्षाणामग्रण्यं मन्त्रिणामपि / सर्वेश्वरं च तं चके क्रमात्प्रीतः क्षमापतिः // 33 // अर्थः-अनुक्रमे खुशी थयेला राजाए तेने अंगरक्षकोनो स्वामी, मंत्रीभोनो पण अग्रेसर अने सर्वनो स्वामी बनाव्यो. // 33 // | पापव्यापारपारीणो रीणातुलचमूकुलः / विवेश देश संरम्भी स कुम्भचरटोऽन्यदा / / 34 // अर्थः-(एवामां) एक दिवसे पाप कार्योनो पारंगामी, तथा अतुल्य सैन्यना समूहने हरावनारो ते उद्धत कुंभानामनो धाडपाडु (ते राजाना) देशमा दाखल थयो. // 34 // सारवीरचयश्चन्द्रस्तबधाय दधाव च / अमर्गत्वरितैः सैन्यैर्दुर्गमार्गान् मरोध च // 35 // अर्थः-शूरवीर सुभटोना समृहने ( साये लेइने) ते कुंभाने मारवा माटे चंद्रकुमार दोडयो, तथा मुख्य मार्गने तजीने अबळे || मार्गे वेगथी दोडता सैन्योथी तेणे [तेना] किल्लाना मार्गने रोकी दीधो. // 35 // पलायमानमुन्निद्ररौद्रचन्द्रचमूभयाम् / तं रुरोध पुरोद्धर्षसहर्षसुभटोत्करः॥ 36 // __ अर्थः-ते चंद्रकुमारनां सावधान तथा भयंकर लइकरना भयथी नाशता एवा ते कुंभाधाडपाडुने अगाडीना भागमां तैयार उभेला आनंदित मुभटोना समृहे घेरी लीयो. // 36 // पुरतः पार्श्वतः पश्यन्मिलद्भिः स बलैरभूत् / बनेभः सर्वदिग्धाववानल इवाकुलः // 37 // . अर्थः-तेथी आगळ, पढखेथी अने पाछडथी एकठां थयेला लइकरवडे ते सर्व दिशाएथी दोडी आवता दावानलमां घेराइ गयेला हाथीनी पेठे व्याकुल थयो. // 13 // A-SM-%AA