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________________ चरित्रम सुमित्रा // 5 // % ...] त तदा पतितः कूपे कोऽयमित्यशृणोद्वचः / उपलक्ष्य स्वरेणाथ प्राह रत्नवती प्रियाम् // 20 // & अ०-कूवामां पडेला ते शेठे ते वखते 'आ कोण छे ?' एवं वचन सांभळ्यु, पछी स्वरथी पोतानी स्त्री रत्नवतीने ओळखीने / ते बोल्यो के, // 20 // अयि त्वमपि पेऽत्र पतितासि कुतः प्रिये / स ते परिजनः क्वास्ति धिग्धिग्विधिविडम्बितम् // 21 // अ०-अरे मिया! तुं पण आ कुवामां क्याथी पडी छे? तारो ते परिवार क्यां छे? धिक्कार छे! धिक्कार छे ! विधातानी विडंबनाने ! साप्यवस्थागतं कान्तं वीक्ष्य प्राप्तं च संनिधौ / बाष्पं दृशि दधौ दुःखानन्दसंकरसंकटम् // 22 // अ०-पछी ते रनवती पण आपत्तिमां पडेला. तथा (पोतानी) पासे आवेला (पोताना) स्वामीने जोइने दुःख तथा हर्षथी मिश्रित थयेलां आंसुओ चक्षुमां धरवा लागी. // 22 // मन्वाना धन्यमात्मानं तत्रापि प्रियदर्शनात् / ऊचे सतीशिरोरत्नमियं रत्नवती ततः // 23 // अ०-पछी सतीओमां शिरोमणि एवी ते रत्नवती त्यां पण स्वामीना दर्शनथी पोताने धन्य मानतीथकी कहेवा लागी के, // 23 // तत्सर्वमटवीमध्ये गृहीतमिह तस्करैः / कान्दिशीकः समग्रोऽपि ययौ परिजनः क्वचित् // 24 // २०-ते सघळं अहीं बननी अंदर चोरोए लुटी लीधुं, अने पछी सघळो परिवार पण गभराइने क्यांक चाल्यो गयो. // 24 // ACCECare
SR No.600419
Book TitleSumitra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1934
Total Pages22
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size2 MB
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