________________ सुमित्रा चरित्रम् // 17 // // 17 // हरनारो वरसाद वरस्यो छे. // 80 // युग्मम् / अत्रोत्सवे कृते राज्ञा पौरैश्चाक्षतपात्रिभिः / भातरं क्षमयामास नत्वा दत्तो जयान्वितः॥६६॥ अ०-( पछी ) त्यां राजाए तथा ( हाथमां ) अक्षतना पात्रोवाळा नगरना लोकोए महोत्सव करते छते दत्ते जयासहित माताने | नमीने खमावी. // 81 // तेऽथ धम व्यधुः शुकं श्रद्धावंतो निरन्तरम् / भुक्त्वायुस्तत्र जज्ञेऽत्र सुमित्रात्मा नृपो भवान् // 82 // अ०--पछी तेओए श्रद्धापूर्वक निरंतर शुद्ध धर्मने आराध्यो, तथा त्यां आयु संपूर्ण करीने ते सुमित्रानो जीव अहीं तुं राजा थयो. दत्तात्मा जिनदासोऽभूज्जयात्मा रत्नवत्यपि / दानरोधादमूलक्ष्मीस्वन्मित्रे सकृदन्तरा // 83 // अ०–ते दत्तनो आत्मा आ जिनदाप्त थयो, अने आ रत्नवती पण जयानो आत्मा थयो, एरीते दान देवानी अटकायत करवाथी ल आ तारा मित्रने कइंक अंतरवाळी लक्ष्मी प्राप्त थइ. // 83 // M श्रुत्वेति प्राग्भवं स्मृत्वा गुरुं नत्वा गताः पुरम् / धर्मध्यानरताः प्रापुञपाद्यास्ते महोदयम् // 84 // अ०-ते सांभळीने ( तथा जातिस्मरण ज्ञानथी) पूर्व भवने याद करीने, अने गुरुने वांदीने राजाआदिक तेओ नगरमां गया, अने धर्मध्यानमां लीन थइने मोक्षे गया. // 84 //