________________ a उपकृत्युपकुर्वाणा ध्रियन्ते धरया न के। अपकृत्युपकारी यस्तेन तु ध्रियते धरा // 47 // सुमित्रा 31 अ०-उपकार करनारपर उपकार करनारा केटला माणसोने पृथ्वी धारण करती नथी ? परंतु जे अपकार करनार पर उपकार 8/चरित्रम् ल करे छे, ते माणसज आ पृथ्वीने धारण करे छे. // 47 // // 10 // वीक्ष्य लक्ष्मीधरो जीवञ्जिनदासमथाग्रतः / त्रपानतमुखाम्भोजस्तत्सोहार्दमिवानमत् // 48 // // 10 // अ०-पछी जीवतो थयेलो ते लक्ष्मीधर (पोतानी) आगळ (उभेला) जिनदासने जोइने, तेनी मित्राइनीपेठे लज्जाथी ( पोतानुं ) मुखकमल नमावीने नम्यो. // 48 // / अर्थनमाह माहात्म्यमयो रत्नवतीपतिः / अन्तःप्रेमसुधासिन्धुतरङ्गोत्तरया गिरा // 49 // अ०-पछी ते महिमावत जिनदासशेठ हृदयनी प्रीतिरूपी अमृत सागरना मोजांसरखी उत्तम वाणीथी तेने कहेवा लाग्या के, पादस्खलनतः कूपे पतितोऽहं त्वयोज्झितः / इति किं लजसे केन स्वोऽप्यनुम्रियते जनः // 50 // अ०-पग सरी पडवाथी हुँ कूवामां पडी गयो, अने तें मने तजी दीधो एमां तुं शामाटे शरमाय छे ? केमके पोताना संबन्धिनी पाछळ पण मरवाने कोण तैयार थाय छे ? // 50 // मिलितोऽस्मिन्ममारण्ये सार्थवाहोऽधुना धनः / काशी यास्याम्यहं गच्छ स्वावासं प्रति संप्रति // 51 // कालवाल