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________________ चरित्रं ॥१शा R%5 C मागील भानूदयेऽप्यविभ्रष्टभासा दीपेन भासुरः। साश्चर्यमेष लोकेनालोक्यमानो गुरु ययौ / / 61 // & अर्थः-हवे तेवी रीतना ते नागिलना महान शीलथी खुशी थयेली, अने विस्तीर्ण विद्यावाळी ते विद्याधरीए पगले पगले करेलो र // 13 // है छे महिमा जेनो, // 59 // तथा तेवी रीतनुं वृत्तांत जाणवाथी वृद्धि पामता हर्षवाळी, अने चारित्र लेवानी इच्छाथी दूर थतां छे पापनां मूळो जेनां एवी ते नंदाथी युक्त थयेलो, // 60 // अने मूर्य उग्या छतां पण अस्खलित कांतिवाळा दीपकथी देदीप्यमान रथयेलो, तथा लोकोवडे आश्चर्य सहित जोबातो एवो ते नागिल गुरुमहाराज पासे गयो. // 61 / / व्रतं नन्दायुतः प्राप्य विधिवद्गुरुसंगतः / विजहार महारण्यारामग्रामपुरादिषु // 2 // अर्थ:--(त्यां) गुरुमहाराजने मळीने ते नागिल नंदा सहित विधिपूर्वक चारित्र लेइने महोटां जंगलो, बगीचा, गांबडां तथा नगरआदिकोमा विहार करवा लाग्यो. // 62 // निशास्वपि प्रदीपस्य तस्योद्योते ततः पठन् / ज्ञातज्ञातव्यपूरोऽयमल्पैरेव दिनैरभूत // 63 // अर्थः-पछी रात्रिए पण ते दीपकना प्रकाशमां अभ्यास करता एवा ते नागिलमुनि थोडाज दिवसोमां जाणवालायक ज्ञानना 6 समूहना जाणकार थया. // 63 // बद्धायुः संयमात्पूर्व मृत्वासौ स्नेहवांस्तया / हरिवर्षे युगलतां ययौ कल्पतरोस्तले // 64 // ____ अर्थः-चारित्र लीधा पहेलांज पूर्वे बांधेला आयुवाळा, अने ते नंदासाथेना स्नेहवाला ते नागिलमुनि मृत्यु पामीने हरिवर्ष त क्षेत्रमा कल्पवृक्षनी नीचे युगलिकपणु पाम्या. // 64 // %5C%ECEM
SR No.600413
Book TitleNagil Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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