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________________ E CI नागील // 11 // चरित्रं // 1 // CR +%AE%ECESSARMECORE अने तेथी ते आपदाओनो समूह नष्ट थयो. // 4 // अथ प्रापददृश्यत्वं त्रपाटोपेन खेचरी / नागिलोऽभूनमस्कारप्रभावोत्पुलकः पुनः // 50 // अर्थः-त्यारे शरमनी मारी ते विद्याधरी अदृश्य थइ, अने ते नागील तो नवकारमंत्रना महात्म्यथी रोमांचित थयो. // 54 // न रतिः पितृगेहेऽपि त्वां विनेत्यादिवादिनी / चेटिकोद्घाटितद्वारा तदा नन्दा तमाययौ // 51 // टू अर्थः-तमारा विना मने ( मारा) पिताने घेर चेन पडतुं नथी, इत्यादिक वचनो बोलती, तथा दासीए उघाडेलु छे द्वार | जेणीने एवी ते नंदा ते वखते तेनी पासे आवी. // 11 // आकारेण गिरा गत्या तां नन्दा स विदन्नपि / खेचरीविप्लवाशङ्की संकीर्णस्थोऽवदत्ततः // 2 // ___ अर्थः-पछी आकारथी, वाणीथी, तथा गतिथी तेणीने नंदा जाणता छतां पण ते नागिल विद्याधरीना कावतरांनी शंका लावीने |संकडामणथी संकोचाइ रहीने बोलवा लाग्यो के, // 52 // अरविन्दाक्षि नन्दासि यदि तूर्ण तदेहि माम् / अन्यासि यदि तद्धर्मः स्वाम्यस्तु स्खलनं तव॥ 53 // ____ अर्थ:-हे कमलाक्षी ! जो तुं नंदा हो, तो तुरत मारी पासे आव? अने जो कोइ बीजी हो तो धर्म मारुं रक्षण करनार थाओ? अने तारुं स्तंभन थाओ? // 53 // ततः स्थितस्वरूपैव खेचरी सा स्खलनतिः / तद्वृत्तविस्मयस्तब्धमूर्तिरेवाग्रतः स्थिता // 54 // अर्थः-पछी अटकाइ गयेल गतिवाळी, तथा तेना व्रतथी आश्चर्ययुक्त स्तब्ध थयेला आकारवाळीज ते विद्याधरी पोताना SHIRECIDESCA5-%
SR No.600413
Book TitleNagil Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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