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________________ अवंती० // 2 // ॐ शुभलोचनोऽपि / निरीक्षते कुत्र पदार्थसाथ // 1 // अवयमुक्त पथि यः प्रवर्तते / प्रवर्तयत्यन्यजनं च चरित्रम निःस्पृहः // स एव सेव्य स्वहितैषिणा गुरुः / स्वयं तरंस्तारयितुं क्षमः परं // 2 // विदलयति कुबोध बोधयत्यागमार्थ / सुगतिकुगतिमार्गों पुण्यपापे व्यनक्ति // अवगमयति कृत्याकृत्यभेदं गुरुयों / भवजलनिधिपोतस्तं विना नास्ति कश्चित // 3 // ततः सर्वेषु लोकेषु यथास्थानं समुपविष्टेषु गुरुभिर्देशना प्रा रब्धा, यथा -आर्यदेशकलरूपबलायु-बुद्धिबंधुरमवाप्य नरत्वं // धर्मकमें न करोति जडो यः। पोत : ज्झति पयोधिगतः सः // 1 // यः प्राप्य दुःप्राप्यमिदं नरत्वं / धर्म न यत्नेन करोति मूढः // क्लेशप्र बंधेन स लब्धमब्धौ / चिंतामणि पातयति प्रमादात् // 2 // आदित्यस्य गतागतैरहरहः संक्षीयते जोमें वितं / व्यापारैर्बहुकार्यभारगुरुभिः कालो न विज्ञायते // दृष्ट्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्चनोत्पद्यते / पीत्वा मोहमयीं प्रमादमदिरा मुन्मत्तभृतं जगत् // 3 // प्रमादः परमो द्वेषी / प्रमादः परमं विषं // प्र-3 , मादो मुक्तिपूर्दस्युः / प्रमादो नरकालयः // 4 // अतो भो भव्याः ! प्रमादं परिहृत्य मोक्षसुखदायके धर्मे आदरो विधेयः. एवं सूरिवराणां धर्मोपदेशं श्रुत्वा बहवो धर्मार्थिनो भव्यमनुष्या सम्यक्त्वमूलानि
SR No.600408
Book TitleAvantisukumal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1933
Total Pages16
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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