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________________ बालकदा सिरिसिरि // 135 // तेहिं गंतृग तओ तहिं भणियाओ नरवरिंदधूयाओ। पइणो कुलकहणत्थं वच्छा ! आगच्छह दुअंति // 731 // तं सोऊणं ताओ मयणाओ हरिसियाओ चित्तमि / तेणं मणवल्लहेणं नूणं आणाविया अम्ह // 732 // सिबिआऐ चडिआओ संपत्ता नरवरिंदभवणंमि। . दण पाणनाहं जाया हरिसेण पडिहत्था // 733 // तेः-प्रधानपुरुषैस्तत्र गत्वा ते-नरवरेन्द्रपुव्यौ इति-वक्ष्यमाणप्रकारेण उस्ते, इतीति कि ? तदाह-हे वत्से !" युवां स्वपत्युः कुलकथनार्थ ढुंत-शीनं आगच्छतम् // 731 // तद्वचनं श्रुत्वा ते मदने चित्त हर्षिते इत्याह-नून-निश्चितं तेन मनोवल्लभेन-भर्ना आवां आनायितेआकारिते स्वः, इत्थं हर्षिते इत्यर्थः॥ 732 // ततः शिबिकायां-सुखासने चटिते-आरूढे द्वे अपि स्त्रियौ नरवरेन्द्रस्य-राजेन्द्रस्य वसुपालस्य भवने मन्दिरे प्राप्ते, तत्र च प्राणनाथं भर्तारं दृष्ट्वा हर्षेण-आनन्देन 6 प्रतिहस्ते-परिपूर्ण व्याप्त इतियावत् जाते / / 733 // ७३१-७३२-७३३--स्पष्टान / 12 // 135 //
SR No.600404
Book TitleSirisiriwal Kaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Bhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1963
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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