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________________ कहिं मालय कहिं संखउरि कहिं बब्बर कहिं नह / सुरसुंदरि नच्चावियइ दइविहिं दलधि मरद // 962 // तं वयणं सोऊणं जणणीजणयाइसयलपरिवारो। चिंतेइ विम्हियमणो एसा सुरसुंदरी कत्तो ? // 963 // उवलक्खिया य जणणीकंठंमि विलग्गिऊण रोयंती / जणएणं सा भणिआ को वुत्तंतो इमो वच्छे ? // 964 // वाख्यो देशः यत्र जन्माभूत् , क्व शङ्खपुरीनगरी ? यत्र परिणायिता, क्व बब्बरदेशो यत्र विक्रीता, क्व नृत्यंलोकानां पुरो नृत्यकरण ? दैवेन मरदृत्ति-गवं दलयित्वा सुरसुन्दरी नय॑ते-नृत्यं कार्यते // 962 // तद्वचनं श्रुत्वा जननीजनकादिसकलपरिवारो विस्मित-आश्चय प्राप्तं मनो यस्य स विस्मितमनाः सन् चिन्तयति -एषा सुरसुन्दरी कुतः समागता? // 963 // उपलक्षिता-सर्वैर्शाता च सती जनन्याः कण्ठे विलग्य रुदंती-रोदनं 4 कुर्वती सा -सुरसुन्दरी जनकेन पित्रा भणिता--उक्ता हे वत्सेऽयं को वृत्तान्तोऽस्तीति // 964 // ततश्च ९६२-९६३-देवेन किं किं न कर्तुं शक्यते, सर्व वस्तु देवाधीनञ्चेति व्यजितम् / ९६४-स्पष्टम् /
SR No.600404
Book TitleSirisiriwal Kaha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri, Bhanuchandravijay
PublisherYashendu Prakashan
Publication Year1963
Total Pages250
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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