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________________ बपन्तीप्रकरणकृतिः / अन्वोऽन्य गाढप्रीत्यां वीरभद्रेण दर्शितो जैनधर्मः, स्वीकृतोऽनङ्गसुन्दर्या n82 // दिबरिद्धीए // 191 // उवभुंजइ विसयसुहं सो सीए तयणु गुणपसत्ताए / इदोविन्दानीए विबुहेहिं संथुणिञ्जतो // 192 // चिंतइ य वीरभद्दो एसा गुणरागिणी सुसीलत्ति / जह जाणइ जिणधम्म अहं सहस्सं तहा सम्म / / 193 // जिणवयणभावियमई भणइ तओऽणंगसुंदरीहुत्तं / लद्भुण पिए मणुयत्तणाइसामग्गिमइदुल्लहं // 194 / / देवगुरुधम्मतत्तावबोहगंगापवाहसुपवित्तं / कायच्वं नियजम्मं सम्मं सिवसोक्खकखीहि // 195 // अट्ठविहपाडिहारो अइसयगुणरयणरोहणमिरिंदो। इंदाइबिहियसेवो देवो अरिहं इहं वुत्तो // 196 / / समसत्तुमिचभावो अवगयजीवाइवत्थुसन्मावो / अकलंकसीलमारो मुणी गुरू उज्जयविहारो // 197 // तत्तं जीवाइयं सत्तविहं नवविहं बहुविहं वा / जं वीयरायभणियं उजियपुडावरविरोह // 198 // इय तवयणायन्त्रणदिणमणिकिरणोग्गमेण तमहरणे / तीए वियसइ माणससरंमि सम्मत्तसयवत्तं // 199 // महुपाणमत्तममरी पसिमरज्झंकारतारसद्देण | सा जंपइ पिय ! मज्झवि देवो अरिहं सिवो सोमो // 200 // मुणिवसहा निस्संगा पवयणपडिवायणुज्जुत्ता / उव्बूढखमामारा गुरुणो मह अनिययविहारा // 201 // भवजलहितरणपोओ अक्खयफलओ अलोहसंजोओ / धम्मो दयाए सम्मो जिणभणिओ दिनसिवसम्मो // 202 // जीवाइयं तत्तं केवलनाणीहि जमिह पन्नत्तं / अमिरुयं चिय | पिययम ! मिच्छत्तं तह मए चत्तं / / 203 / / निम्मलगुणमणिसायरजिणधम्मविवेयलच्छीदाणेण / भवदोगचं पिययम ! तुमए मह दरमबहरियं // 204 // धनाहं कय पुन्ना जीए कप्पहुमेण मह तुमए / संजोओ सो जाओ जो दुल्लहो अकयसुकयाणं // 205 // किंतु मह दंसिजउ गुरूण गुरुणीण मुत्तिनेवत्थं / चित्तेणं चिरोणधि जमहं सक्खं व पेच्छामि / / 206 // तो चित्तपट्टियाए साहिणयं वीयरायजिणपडिमं / लिहिऊण साहुसाणिरूवाई दसए एसो / 207 // तो निच्चं जिणपूयणगुरुबंदण % A4%AA |82 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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