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________________ श्री जयन्ती प्रकरणपतिः / साण निवासो सच // 76 // |99 // गंभीरपालसियपायपसरेण / सयंवरा इंति लच्छीओ / / 93 / / उक्तं च-साहस्सं अवलंबतो पावइ हिययत्थियं न संदेहो। जेणुत्तमंगमित्तेण राहुणा 6] रत्नपुरे कवलिओ सूरो // 94 // अहवा रयणायरस्स महारंभेणायासिऊण अप्पाणं / उवलद्धा हरिणच्छी लच्छी हरिणावि हरिसेण * शंखश्रेष्ठिना. // 95 // तो जाणवत्तपहुणा विहिणा आपुच्छिएण ऽणुनाओ। सो तम्मि गओ दीवे सिग्धं निविग्धपोएण / / 96 // रयणउरं वीरभद्रस्य नामेणं नयरं तत्थथि सुरपुराओवि / अहियं चिय जं दिवाईसयवरा नरवरा बहुया // 97 / / लच्छीए कुलगेहं जो || प्रदत्तोमालंघह कहवि नेय मायं / तत्थ रसाण निवासो सच्च रयणायरो राया // 98 // पाणपियावि महासई उत्तमकुलरूवतिहु. तृपितृसेवायणम्भहिया / तस्सस्थि अग्गमहिसी देवी तेलोकदेवि त्ति // 99 // गंभीरधीरसदो धवलगुणो सइपवित्तयासहिओ। किंतु विषयोकुडिलत्तरहिओ सिट्ठी नामेण संखोत्ति // 10 // तस्सावणधरणीए हरिसरसोल्लसियपायपसरेण / कप्पहुमेण व सहसा पदेशः। अवइ वीरमद्देणं // 1.1 // दट्ठण तयं तुट्ठो सिद्धी संखो विचिंतए एवं / को एस दिवरूवो ? सक्खं गुणरयणरासि व // 102 // पढमाभासणरसिओ आभासइ पत्तदसणुल्लसिओ। आगच्छ वच्छ ! उवविस कओ तुम आगओ एत्थ // 103 // तत्तो अवणयगत्तो आलत्तो तेण अमियरससित्तो। आसीणो महुरगिरा कयंजली विनवइ वीरो // 104 // अहमुसभदत्तपुत्तो दक्खिणभरहद्धतामलित्तीए। देसंतराण दंसणकोऊहलमित्तकजेण // 105 // एगागी वियरंतो अजं चिय ताव पवहणुत्तिन्नो। इन्दिदिरसुंदेरं तुह पयपउमे इहं पत्तो // 106 / / तो भणइ संखसिही लच्छीकुलमंदिरं तुम पुत्त / सवंद गलक्खणेहिं वियक्खणेहिं जओ नाओ // 107 // जोवणभरंमि विणओवयाररसिएहिं जत्थ पियराण / होयत्वं तत्थ | कहं गुरूण रेण गंतवं // 108 // अगुरुण पासगओ पावयसंगेण कह समुजोयं / पाविज धूमकुरुलीमोहतमेणं सुपुरि HO // 76 // तुम आगओ एत्य मरासिन / देसंतराण देसको महुरगिरा कयंजली wi9647
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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