________________ श्री जयन्तीप्रकरणवृतिः / मेघ HitSociॐ // 68 // जिणेसरं विनवइ नमिउं // 995 // संजमगिरिसिहरारोहणमि खलियस्स मज्झ करुणाए / तुमए हत्थावलंबो दिनो * मन:स्खलदुल्लहो अपुग्नाणं // 996 // गुणरयणायर ! सामिय ! तुह पयजुयले पहासमाणमि / मणखलणपावसुद्धिं करेमि गुरु- नपापविशुभत्तिलहरीहिं // 997 // मह मेहस्स सुहोदयभावाहियचरणघायरयपसरे / निम्मलदयपि जिणवर कलुसं चिय माणुस्स द्विः कुता जायं // 998 // तुह अकयगवयणेणं कयगफलेणं व संपयं तपि / जायं तह प्पसनं जह ललियं साहुहंसाणं / / 999 // इच्छामि सामि ! संपइ अच्छिजुयं उज्झिऊण अंगमि / मुणिरायपायघट्टणपसायसोहग्गमइदुलहं // 1000 // तो वीरजिणा- मुनिना। इट्ठो मेहमुणी थेरपायपउमंमि / दिढपक्खवायविहणियरओ जहा छप्पओ निहुओ // 1001 // अंगोवंगोवगयं सुहयं परितावभावपरिहरणं / अणवस्यं आसायइ सुयमयरंदं अमियमहरं // 1002 // पंचमहत्वयसुरतरुनंदणरमणीयसबपरभागो। मज्झत्थो जह मेरू थिरपरिणामो खमाहारो॥१००३ / / चंदो व सोमलेसो केवलकलंकपुनवित्तधरो। पउमं व निरुवलेवो | किंतु न इच्छइ जलावासं // 1004 // गयण व निरालम्बो तारयमुणिरायगुरुकुलावासो। अपडिबद्धविहारो पवणो इव न उण चलभावो // 1005 / / मयवारणो अकलहो सुपन्नाबोहीवि नउण अस्सत्थो / संखो व निरंजणओ हियए कुडिलो नउण किंपि // 1006 / / हिययट्ठिअपरमपओ अक्खोहो सागरो व गंभीरो। किंतु नं रुदावत्तो उक्कलियाहिं नउण पत्तो // 1007 // विणयोवयारनिरओ विरओ सबाण पावट्ठाणाण / गिन्हइ दुविहं सिक्खं सक्खं दक्खं व मन्नतो॥१००८॥ आयासे अठविओवि हु अपक्खवाईवि विहरइ दिसासु / विणयंगओ विराओ अक्खलियचरणो विविहवनो / / 1009 / / भणियं च-एस अखंडियसीलो बहुस्सुओ एस एस सुपसनो / एसो उ गुणनिहाणं धन्नस्साघोसणा भमइ // 1010 // मेहकुमारमुणिंदो सज्झाय // 68 // BRICAUSTROCRACHACKS