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________________ G RC जयन्ती प्रकरणवृतिः / गुरुप्रदर्शिताचामाम्लकल्पेन नष्टं ज्ञानावरणीयम् / // 46 // न अक्खरं ठाइ किंपि हिययंमि / सम्मइंसणहेऊ सुत्तविबोहो कहं होही ? // 655 // एवं विसन्नचित्तो अन्नाणपरिसहेण संतत्तो / गुरुपयकमलासेवणनिव्वुइकरणज्जुओ तत्तो // 656 // मन्नुभरहइनिस्संदविंदुबाहुल्लनयणअरविंदो। असगडाए जणओ अणगारो एह गुरुअंते / / 657 // विनवइ वहइ भयवं! केणवि कम्मेण अज्ज मह मेहा / एवारुगंधविहडियवक्ककणिकाए समसीसि // 658 // उवउत्तघोसणे रविकिरणकलावेवि कोसियस्सेव / महजेवं अंधयारं वियंभए चरणपरिहारं // 659 // तत्तो गुरुणा वुत्तो नाणावरणीयकम्मउदएण / सहियवो धीरेणं अन्नाणपरिसहो एसो॥६६० // जम्हा पुबकडाणं कम्माणं वेयणेण निजरणं / अहवा उग्गतवेणं बझेण अन्तरेण च // 661 // तो जइ देवाणुप्पिय ! तुम्ह न उद्वेइ एवमज्झयण। किजउ तस्साणुना अणुग्गहोऽणुट्ठियस्सावि // 662 // इय गुरुवयणरसायणवसेण वियसंतवीरियायारो / सो अणगारो जंपइ भय को इत्थ कप्पोत्ति ? / / 663 // गुरुणा भणियं मुणिवर ! जाव न उठेइ एवमझयणं / / ताबिलतवचरणेणाराहिजइ पसंतेहिं // 664 // गुरुवयणनायकप्पो विगयविगप्पो विसुद्धसंकप्पो / फलदाणकप्परुक्खं कप्पं पडिवञ्जए हिट्ठो // 665|| सरयससिकिरणनिम्मलसुयमत्ती तयणु तस्स पसरंती / उवसमियकलुसमा जडासयं सच्छयं नेइ // 666 // थेराण सुयधराणं पाए पणमामि गरिमधारीणं / जत्तो पसरइ सरसा सरस्सई गहिरनिग्घोसा // 667 // जे सुत्तेणाणुगया कहमवि सुइ छ घणरयच्छन्ना / ते पडियावि खमाए लीलाए उद्धरिजंति // 668 // धनाणं सुयलामो सिरिसासणपालणेण सुकयत्थो / बहुसुयभावेण विणा न कुलुद्धारो मुणीणपि // 669 // उत्तमसुयलामेणं पवयणरंगो हवेइ 6 कर्कटीगंधविघटितवल्ककर्णिकायाः / 7 एव / * // 46 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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