________________ // 41 // शिवेन भिल्लस्थ सत्त्वगुण एस बोहियो दिट्ठीदिद्रुतदिट्ठीए / / 580 // काऊण काणमच्छि द्विओ पभाए सिवो ससत्तीए / दट्टण माहणेणं तओ परुन्नं घणमणेण // 581 // कुलफंसुणेण केणवि असिट्टचेद्वेण पावपुढेण / पकओ अच्छिविणासो हाहा कह मज्झ देवस्स ! // 582 // हत्था इंतु विहत्था रोगायंकेहि तस्स अपसत्था / हवउ य दुत्थावत्था देवच्छि नासयंतस्स // 583 // इच्चाइ ज्जरिऊणं विसरिऊणं बहुं बहुं बडुओ / तत्थ भुवणेक्कदेसे तुन्हिको अच्छइ निलुको // 584 // इत्थंतरे पुलिंदो सरवणुप- तीहिं वावडकरग्गो / जलपुन्नवयणकलसो पत्तो देवच्चणं काउं // 585 // अवि एस मिच्छजाई काणच्छि पेच्छिऊण देवतणुं | चिंतह हाहा कट्ठ नटुं देवस्स नयणमिणं // 586 / / का देवे मह भत्ती ? का अणुरत्ती ? य को व बहुमाणो ? / देवो जमेगनयणो हहा महं दोण्णि नयणाई // 587 // बहुमाणसाणकोणुत्तेई यमल्लीए उक्खणेऊण / तो उवइ देववयणे नियनयणं साहसुल्लसिओ / / 588 / / अह तस्स पुलिंदस्सवि पल्लविए साहसम्मि साहारे.! कलयंठगिरा जंपइ तं बडुयं सो सिवो देवो // 589 // माहणवर ! तं पेच्छसु इमस्स बहुमागभत्तिमणुरायं / नयणप्पयाणपयडीकरतं अंतरंगपि / / 590 // | बहुमाणकणयकसवट्टयंमि नियनयणअप्पणेऽणेण | दिन चिय सुपरिक्खिय कल्लाणपरंपरा होइ // 591 // मणिमयकुंडलजुयलो हारविरायंतवच्छत्थलो / विरइयवरनेवत्थो अच्छिविहीणो न सोहेइ // 592 // जेण विइन्ना दिट्ठी मग्गामग्गाइ | दीसइ जीए / तेण विइन्नं सवं सोहग्गमहग्घयं जीयं // 593 / / तो एस पुलिंदोवि हु विसेसविनाणवियलचिचोवि / जं दिढसत्तो रत्तो पसायजुग्गो सुराणंपि / / 594 // निवडियकजसारं सम्भावं जाणिऊण मणुयाण / सहायरेण देवा संभासं 3 दृष्टिदृष्टान्तदर्शनात् / 4 प्ररुदितं / 5 बहुमानशाणकोणोत्तेजितभल्ल्या। ***936- 13 ASOCIAGAR दर्शनाय स्वैकाक्षिज्ञातेन बटुकः प्रत्यायित // 41 //