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________________ श्री जयन्तीप्रकरणवृतिः / शीलसत्त्व| रक्षार्थ मृगावत्या: सद्भावविचारणा, दूतप्रेषण // 16 // ESSASARNAGAR एसा लोउत्तरा उ कउओच्छी। जीइ सवणेवि राया जाओ अइकामकच्छुल्लो // 194 / / अन्नं च दिवचरिए वामेवि हु निम्मरेण वित्थरिए / हिययंमि दुक्खभरिए सत्तं सीलं न मोचवं // 195 // अक्खोहो अत्थाओ जलही रयणायरोवि सिरिवासो / अचलियमेरो गरुओ असंखसत्तालयो जेण // 196 / / अइउक्कडम्मि सत्ते बुद्धी पुरिसस्स जायए जीए / अत्थं पेच्छइ एवं कविलस्सवि सासणे मणियं // 197 // सत्तो सो सप्पुरिसो उदयगओ दिणयरो व अनसिं / अवहरइ तमं तेयं करइ पयावं जगुजोयं // 198 // सीलं भन्नइ वित्तं सम्मं तमखंडियं वहइ जो उ / सो पउमं व सुराणं लहइ सिरग्गे पइट्ठाणं // 199 // पुरिसो अखंडवित्तो वंसग्गपइडिओ गुणाहारो। कल्लाणकलसरम्मो सियावत्तं व तावहरो // 20 // मुत्ताहलं व वित्तं विणा सिणिद्धोवि कंतिरिद्धोवि / गरुओवि सत्थसुद्धो नायमहग्यो हवइ पुरिसो // 201 // लोए सिरेण बुज्झइ मंगलहेउत्ति वित्तसंजुत्तो / सिद्धत्थउ व लहुओ कडुओवि हु तिबनेहिल्लो // 202 // सबासापरिपूरणदुल्ललियं सफलमेव मह सीलं / कल्लाणगोत्तरूढ़ नंदणवणराईसोहिल्लं // 203 // सीलंगाण सहस्सा अट्ठारस जीए मह मणे इट्ठा / तीए इन्हि किं पुण देसे सीलेवि संदेहो ? // 204 // ता बुद्धिओसहीए सीले सिरिपवयंमि लद्धाए। हणिऊण चंडतेयं जं गजन्तं गहिस्सामि // 205 // एसो न जुज्झसज्झो पजोओ किंतु बुद्धीए जेयहो / इय चिन्तिऊण सुइरं मियावई पेसए दूयं // 206 // तेण य दिट्ठो रायाऽणायासगओवि जो रविपयासो / सप्पणयं विनतो सा मियदेवी इमं भणइ // 207 / / कहमागच्छामि अहं ? बालो मे उदयणो सुओ जेण / वइरीहिं परिहविजइ लद्धावसरेहिं उग्गेहिं // 208 // उग्गतमाणवि कहमिव वइरीणं अवसरो इहं अस्थि / उइयंमि मए सूरे इय मणिए नरवरिंदेणं // 209 / / दुएण पुणो भन्नइ सच्चमिणं किंतु सुबइ इमंपि / जोयणसयंमि // 16 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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