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________________ 245 // सत्ये ज्ञाते नृपस्य पश्चात्ताप: पुन:पुनविज्ञप्तिश्च / 393EOCESSOCIAॐॐॐ मोरियवंसस्स वित्थरन्तस्स / तुह पिउणो विय जणओ। जं जणओ सबलच्छीणं // 22 // नन्दस्स कन्दकसणो वसणनवमहणमन्दरगिरिन्दो / पुरिसोत्तमपरिगहिओ सिरीसमुल्लासहेऊ त्ति // 23 // एयंमि मन्तिमंडलचूडामणिकरणिमुबहन्तम्मि / पिसुणवयणेण केणवि परिभवकरणं न गुणहेऊ // 24 // किं पडिकुलं देवं जायं ? तुह देव ! जेण चाणके / कप्पहुमम्मिवि तुमए खिविया कोवारूणा दिट्ठी // 25 // ता वच्छ गच्छ सिग्धं खामसु चिन्तामणिं व पूएसु / चाणकं मन्तिवरं वरयं सरहन्दुजसपसरं // 26 // रायावि भणइ धाइं मह तुमए साहियं जहा माया / उयरस्स फालणेणं निहया एएण सचिवेण // 27 // धाईवि भणइ नरवर! तुह जणणी चन्दगुत्तनरनाहे / विसभोयणं करन्ते वारिजन्तीवि नेहेण // 28 // गिहिय कवलं मुंजइ तोऽणेणं मंन्तिणा लहुं चेव / एईए कुच्छीए जीवो पुत्तोति चिन्ते // 29 // उयरंमि वियारिऊणं गन्माओ नीणिओ तुम वच्छ / विसविन्दूमसिवन्नो तुहुत्तमंगे तओ जाओ // 30 // जइ न करिस्समयं तह तमजीविस्सं कहं ? महीनाह / तह राय बिन्दुसारो तुमं पसिद्धो अओ चेव // 31 // इय धाईए कहिए तूरियं गन्तूण सायरं राया / पच्छायावपरद्धो खामइ बहुविहमिमं सचिवं // 32 // भणइ महत्तम ! न मए परमत्थो कोवि जाणिओ एत्थ / तेण पियामहतुल्ले तुमम्मि कोवो कओ पुजे // 33 // कोवो मायंगो इव सवत्थवि दूरओ विहेयवो। किं पुण गोत्तगरिद्वे दिउत्तमे होइ सन्निहिओ ? // 34 // तुमए चिय रजसिरी पुरिसोत्तमचरिय सच्चयासहिय / विक्कममन्दरमहिए पयासिआ रिउसमुइंमि // 35 // ता तुम्ह विणा एसा कहणु थिरा होइ ? पयइचवलावि / ता बुद्धिसिद्धिकुलहर ! पसीय चाणक एहि पुरं // 36 // अम्हाणं बालाणं अविवेयपराणं पुनरहियाण / होसि परामुहहियओ होऊण पियामहो कहणु ? // 37 // गम्मत्थस्सवि जइ मह जीवियदाणेण अहव जण AAHASRAEGALOCAL // 245 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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