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________________ // 241 // मोगत्यागेब्रह्मदत्त|स्य मुनि वरेणोपदेशोदत्तः। मणिगुरुसँगमबोहिलाभसरिसरूहे / पडिबुद्धे चरणसिरी पडिवमा सहरिसेणेसा // 32 // इइ मणिए मुणिवइणा चक्की पडिभणइ बन्धव ! इयाणिं / कुणसु तमं महतोसं रजसिरीसंविभागेण // 33 // सा सलहिजइ लच्छी विबुहेहिं नीइमग्गकुसलेहिं / जा सद्धं उवभुजइ सिणिबन्धूहि मित्तेहिं // 34 // सुमरियपुबमवाणं अम्हाणं तुम्ह विरहदावग्गी। उवसन्तो जम्मन्तरवन्धवसंगमघणेणऽज // 35 // पुवृभवेसुं नेहो अहोनिसिं संगयाण बुड्डिगओ। जह तह वड्डउ इहई लच्छीए संविभागेण ॥३६॥काओवि कुणइ सई भुजंलहिऊण सयलबंधूण | ता कह तह विरहेणं रजसिरी होउ मह भुजा ? // 37 // इइ जंपियंमि रना मुणिसीहो भणइ राय रजसिरी। भवदुहदन्दोलिसही दुग्गइपहगमणपगुणरही / / 38 // रजसिरीलुद्धाणं मोहमहानरवरिंदसिन्नमि / पडियाण नाणदसणचरित्तरयणाई नासंति // 39 // चिन्तामणिसरिसेसुं नढेसु तेसु होइ जीवाणं / भवदोगचं नरवर ! अणन्तदुहहेउयं सुइरं // 40 // एसा हु रायलच्छी कुच्छी जलहिस्स जेण दुप्पूरा / अणवरई सम्पजइ महावयासंगमो वित्थ // 41 / / आरामंमि व रजे हुन्ति महाराय जं महारम्भा / आमूलाओ तत्थ य फलोवलंभे हवइ न्छेओ // 42 // विसयाणुवभोगत्थं रजं पत्थिजए महीनाह ! / ते पुण माणुसजम्मे अमेझपरिमद्दणुप्पाया // 43 / / असुयंमि समुन्भूए मणुयसरीरम्मि असुइरसपुढे / निचं अमेज्झकुढे विसहसुहं भन्नए किन्नु ? / / 44 / / आवायमित्तमहुरा विसराऽसुहरं व विरसपरिणामा / किम्पाकफलप्पाया हुन्ति जियाणं दुहविवाहा // 45 // जइ नाम देवलोए दिवसरीरेहि अच्छरगणेहिं / सद्धिं भोगुवभोगे न हु तित्ती ता कहं एत्थ ? // 46 // तुच्छाणं विसयाणं कजेणं राय मणुयजम्मंमि / हारेजइ सुकुलाइयदुल्लहरयणाण सामग्गी // 47 // जीए जिणधम्मेणं सम्मं आराहिएण सुगुणेण / मोस्खेण सरलयाए GA%A9- A4% 241 // 11
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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