________________ 544CKC जयन्ती- प्रकरणपतिः / / प्रेक्षणे ननकीगीतिश्रवणास्वस्थो जातः चारित्रे / 232 // ABC%ACIENCE | कडओ / मिण्टेण य रयणसिणिं सवाणि य लक्खमुल्लाणि // 29 // जाए पभायसमए पुच्छन्ते नरवरम्मि पुण्डरिए / निय- वुत्तन्तं साहइ सपच्चयं खुल्लगकुमारो // 30 // इत्थाऽहं रजत्थी समागओ तात! माइवयणेणं / सम्पयसंबुद्धोऽहं मुणिऊण | गीइयं राय ! // 31 // रायकुमारेणोत्तं रजं गिन्हामि मारिउं जणयं / एयाए गीयाए निवारिओऽहं अकजाओ॥ 32 // विनवइ सत्थवाही बारसवरिसाई सत्थवाहस्स / अत्थोवजणहेउं गयस्स देसन्तरे दूरे // 33 // तस्सागमणे संसयदोलारूढम्मि वट्टए अरई। अन्नपियम्मि मणो मे विणिवारइ गीइया एसा // 34 // जयसन्धीवि अमचो तुम्हुवघाएण अन्नराएहिं / उवयरियो विनियत्तो देव ! इमं गीइयं सोउं // 35 // मिंठेण वि विनत्तं गयरयणं सब्बलक्खणावरियं / एयाए गीयाए न सत्तुवयणा हणिस्सामि // 36 // सो वि संविग्गे पञ्चावइए स खुड्डगकुमारो / परियरिओ तेहिं सवेहिं तओ गुरूपासंमि सो जाइ // 37 // संजमसिहरारूढो जीवो परिबुडइ जेण तेणेमं / अरइचरित्तमोहं पावट्ठाणं भणन्ति विऊ // 38 // // अरतिकथानकं समाप्तम् / / रतिरप्यऽपरापरविषयग्रामानुसारिणी जलजंतूपकारिणी रजाकालुष्यधारिणी समुन्नतस्थानपरिहारिणी गिरिवराणमप्यन्तस्तत्वमेदिनी अप्याश्रितमेदिनी श्रोतस्विनीव प्रतिपदं निम्नगामिनी महत्पापस्थानमिति वर्णयन्ति लब्धवर्णाः / अन्यान्य विषयप्राप्तरता हि प्राणिनो भवन्त्यारामा इव महारंभाः सीमानमुल्लंध्य प्रवर्तितसमरसंरंभाः पखंडक्षोणीमंडलेश्वर्याः श्मशान&ा भूभागेष्विवाऽशुचिस्वभावेषु कामभोगेषु गृद्धा गिद्धा इव पक्षपातरसिकाः कर्मक्षयोपशमवैचित्र्यतः समुत्पन्नजातिस्मरणतः | परिज्ञातानुभूतदेवभावा अपि प्रतिबोध्यमाना अपि पूर्वभवबान्धवेन विविधाभिः वैराग्यकथाभिः न प्रतिबुध्यन्ते ब्रह्मदत्त P // 232 //