________________ अरतिमोहनीयोदयोऽपि महापापस्थानमिति प्रतिपादयन्ति परमार्थज्ञाः। यतः-तस्मिन् सति प्राणी दिविगतिप्रवणेऽपि अरतिपापजयन्ती IPI पक्षपरिग्रहे, प्राप्तेपि द्विजत्वे क्षमानुगतदृढमूलप्रबंधे प्रपंचितश्रुतस्कंधे चतुर्दिगंतशाखानुबंधे तापापहारिछायाविस्तारिपात्रपरप्रकरण- द्र परासंबंधे सौरभोद्गारियशोराशिकुसुमसंभारस्वर्गापवर्गफलप्रदानोपकारेपि गच्छगहने न स्थेमानमात्मन्यदधानः प्रीतिमात्म- 18 कोदाहरणेप्रतिः। सात्करोति / क्षुल्लककुमारवत् तथाहि | पुण्डरिकसाकेयपुरे पवरे भूमीरमणीविसेसए पुत्विं / रायाऽसि पुण्डरिओ कण्डरिओ तस्स लहु भाया // 1 // जसभदानामेणं नृपस्य य॥ 230 // महासई तस्स पणयिणी हुत्था / रोहणधरणीकरणिं पत्ता रूवाइरयणेहिं // 2 // चंकमन्ती दिट्ठा घरंगणे ललियचरणचारेणं / 18 शोभद्रोपपुण्डरियनरिन्देणं तणुप्पहाभासियदिगन्ता // 3 // तो तस्स मयणबाणा हियए लग्गति क्खलियचित्तस्स / मुश्चइ कुलमजायं रिकामार्ता लजं मुच्छियमणो तत्तो॥४॥ ते विरल च्चिय धीरा जेसिं पररमणिरूवदिट्ठीए / हियएण समं दिट्ठी पच्छाहुत्तं वलइ झत्ति // 5 // तो एस पुण्डरिओ तीए रूबंमि मुच्छिओ सन्तो / रइमलहन्तो दुई पेसइ तीए समीवम्मि // 6 // दुईवि भणइ तिस्साहुत्तं चित्तं निवस्स अइमत्तं / अणुरत्तं पडिवजसु पसीय ता तं पई देवि ! // 7 // जसभद्दावि य चिन्तइ दिणमणिविम्बंपि फुरियकिरणोहं / उग्गिरह अंधयारं दुरूज्झियगुरूलहुवियारं // 8 // भणइ य दूइहुत्तं राया परिचत्तसकुलमजाओ। जं एवं अणुरजइ लज्जइ नियमाउणो न कह ? / / 9 / एवं तीए वयणं दुई गन्तूण साहइ निवस्त / सोविय गिद्धो लुद्धो मारावइ बंधवं लहुयं // 10 // जसभद्दावि य रन्नो निग्घिणचरियं निरिक्खि सिग्छ / गहिऊणाऽऽभरणाई नानासइ नियसीलरक्खट्ठा // 11 // सावत्थिं पुरि पत्ता चिट्ठइ पडिवनजणयभावस्स / थेरवणियस्स गेहे दुहिया विय दुहिय दृष्टिः / AAREENA %ALCCCCIRCHCAREC1-95.