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________________ जयन्तीप्रकरणवृत्तिः / गुरुतिर // 228 // SAGACASSASSIAS पावो रूदो अज्झावयं मणइ खुद्दो। तुम्ह सो अङ्गिरिसिसिस्सो हणिऊण जोइजसं // 8 // घेत्तणं कट्ठभरं एसो सिग्धं समा- रुद्रछात्रदगओ एत्थ / पिच्छह तं खड्डाए पक्खिस जइन पत्तियह // 9 // तं सोचा दट्टणं उज्झाओ भणइ अंगरिसिमेवं / हा पाव त्तकलङ्केन कहं तुमए किनमेयं कयं ? धिट्ठ ! // 10 // इहलोए परलोए इत्थीपाएण पावपकिल्लो। होइ दुहत्तो सत्तो बुच्चइ कुलफंसणो लोए // 11 // ज मा समीबंमिबि पढमाणो सत्थस्थपरमत्थं / एवं बसि पावे ? तं मन्ने तं अभवोऽसि // 12 // अव- स्कारे सति सर दिटिपहाओ पाविट्ठ गरिद्वदुट्ठ मह इन्हि / पञ्जत्तं पढिएणं तुह एवं पावचरियस्स // 13 // दुस्सहमब्मक्खाणं बज- गृहीतानिवार्य गुणगणगिरिस्स / सोऊणं अंगरिसी झत्ति विलीणो व सवंग // 14 // खणमेकं निचिट्ठो चिट्ठइ धरणिगओ स ऽङ्गार्षिणा मुच्छाए / सीपलसमीरववगयमुच्छोवि चिन्सइ एवं // 15 // हा जीव कयं तुमए पुरभवे जमिह मोहमढेणं / पापं तं च्चिय दीक्षा। उदयं पतं दोसं विणा चेवं // 16 // ही संसारसहायो जस्सि जीवावि सुद्धचरियावि / हुंति अकम्हा निहुरअब्भक्खाणेण |P सकलंका // 17 // किं मज्झ जीविएणं ? नाणगुरूणषि वजणीयस्स / एवं अवज्झपंकोवलेवलित्तस्स मलिणस्स / / 18 // अमयस्सन्दिकरोवि हु तावहरोवि हु कलाहि कलिओवि / जह चन्दो सकलंको खंडिजइ किन्हपक्खेणं // 19 // अन्मक्खाणेणं पुवजियपावकम्मजणिएणं / तह झिझिस्सामि अहं दिणे दिणे तेयपरिहीणो // 20 // सवतषणकलासाइयवित्तो | भुवणं पयासइ कलाहिं। सकलंकोत्ति भणिजइ निसायरो रयणिरमणोवि // 21 // अहवा गुरूपएसा विविहेण तवेण सयलमल| हरणे / कल्लाणं चिय कणयं अकुच्छणिजं जए होइ // 22 // तम्हा सुगुरूणन्ते पडिवजियसवसंगविरइरओ / तत्तविचित्ततवेणं अप्पाणं सोहइस्सामि // 23 // एवं विसुद्धभावो अविहियपावो गुरूण पयमुले। गिण्डइ विहिणा चरणं करेइ विहिणा // 228 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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