________________ की -% 227 % 2%%% अभ्याख्यानपाप स्थानत्यागेऽङ्गपिछात्र हिमम्लानज्ञानपयाकरतया इर्ष्या शल्यवितुद्यमानमनःप्रसरतया अतुच्छमच्छच्छिन्नसत्पक्षतया द्विजत्वेऽपि दिव्यगत्ययोग्यतया दुर्गतिगामित्वमेवात्मनः प्रकटयति / किंच-अभ्याख्यानदानतः प्रेत्यानेकशः संपनीपद्यते अकृतपापस्यापि जडाशयस्य प्राणिनः कलंककोपलेपः / यतः। "वहमारणअन्मक्खदाणपरधणविलोवणाईण / सबजहन्नो उदओ दसगुणिओ एक्कसि कयाणं" ॥१॥तिबयरे उ पओसे सयगुणिओ सयसहस्सकोडिगुणो / कोडाकोडीगुणो वा होज विवागो बहुतरो वा // 2 // यः पुनरम्याख्याने पीडथमानोऽपीक्षुदण्ड इव निसर्गसिद्धमाधुर्यों न क्षारभावमुद्वहति / ताप्यमानोपि कनकपिण्ड इव न मालिन्यमात्मसात्करोति / घृष्यमाणोपि न श्रीखण्डमिव सौरभोद्गारपरिहारमिच्छति, किन्तु वर्द्धिष्णुधर्मध्यानानुबन्धक्रमेण शुक्लध्यानमवाप्य केवलज्ञानसंपदंगनालिंगितमृतिदिविषदामपि वन्दनीयपादारविन्दो भवति, अंगर्षिछात्रवत् / तथाहि चम्पाए नयरीए सत्थत्थसरोरुहाण दिणनाहो / आसी कयसज्झाओ कोसियअजो उवज्झाओ // 1 // विविहाई सत्थाई पढन्ति तस्सन्तिए बहवे सीसा / अंगरिसी सरलमणो रुद्दो खुद्दो सहावेणं // 2 // उवज्झाएण वियत्ते आएसे ASALASARASWAS % %%%%%%% भरं पेच्छह अंगरिसिं संमुहमुविन्तं // 4 // चिन्तइ एयस्सुवरि होही अज्झावगो अइपसनो / अपसायं मज्ज पुणो पमत्तचित्तस्स काहीत्ति / / 5 // एवं अदृज्झाणो आणिन्ति कट्ठभारयं गरूयं / जोइजसं सम्पच्छइ थेरि सवडंमुहं इन्ति // 6 // रूद्दो रूद्दज्झाणो निहणइ तं खड्डुनिक्खियं काउं। गहिऊण कट्ठभारं अज्झावयं अन्तिए पत्तो // 7 // निग्षिणकम्मो // 227 //