SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 213 645455540ACAONGS | अखंडचारित्तजाणवत्तेण / मह रायसायराओ विग्धं जं तं समुत्तिनो // 87 // एवं पसंसिऊणं दुल्लहसंमत्रयणलाहेण / सा | द्वेष नन्द वन्तरी पहिट्ठा जहागयं पडिगया शत्ति // 88 // | नाविको॥रागाख्यानकं समाप्तम् // दाहरणम्। तथा द्वेषोपि महीयः पापस्थानं / यतोऽसौ दोषाकरः शशीव प्रपंचितकलाकलापेऽप्यखंडवृत्ते तथास्मनि कुरंगकलंकमावहति / प्रभूतसत्वे समुद्रेऽपि समुच्छलितोत्कलिकाकुलाननेकप्रकारान् क्षारोमारान् समुल्लासयति प्रतिक्षणम् / ततः सर्वतः प्रसरन्ति प्रतिकूलमेव दुरवगाहाः सरस्वतीप्रवाहाः, तेच निरूध्यते मार्गे ममनप्रवृत्तिः / निरूद्धया चानया जायते कालविलम्बः / तेन च सीदन्ति कार्याणि / ततश्च लब्धेन्धनो ज्वलति क्रोधधुमध्वजः / स्फुरति च सतो धूम्यायमानो मिथ्यामिमानो / विजृम्भते च ज्वालावली कराला / धर्मरूचे नेरिवाशु दाहिकाऽकसाह तेजोलेश्या / दह्यते तथा परापरजीवाश्चासकारिणी पुण्पांकुरवती क्षमा / प्ररोहति ततो दर्मशुचिणिरिव प्रतिपदं व्यथाहेतवैरानुबंधपरंपरा नाषिकनन्दस्येव तहाहि-आसि पुरा धम्मरूई अणगारो गुणमणीण भण्डारो। अपडिपद्धविहारो तवसंजमलच्छीउरिहारो // 1 // एगागी विहरन्तो गामागरनगरमंडियं वसुहं / दिपन्तषिविहलच्छीसिद्धेकसुहमि कयगिद्धी // 2 // पत्तो गंगातीरे नन्दो नामेण नाविओ तत्थ / निवसइ तीरग्गामे मुलेणुत्तारए लोयं // 3 // अह धम्मरूई साहू सह लोएणं समारूहिय नावं / गंगनइउत्तिनो इरियावहियं पडिकमेइ // 4 // सस्थियजणो गच्छइ मुलं दाऊण तस्स नंदस्स / अत्यकए अवरूद्धो नंदेणं धम्मरूई साहू // 5 // भणइ य नंदं एसो अम्ह मुणीणं नस्थि अत्थोत्ति / नंदेणुतं मुण्डा नावं तो कि समारूढो ? // 6 // 13 // 213 // NOSIS5555
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy