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________________ जयन्तीप्रकरणकृतिः / व्यन्तरीमवे कृत्यो. पसर्ग गुरु| देशनया प्रतिबुद्धा। // 212 // CREATERRORSC% निवाए छिमप्पाणा मया असि // 7 // तोऽकामनिजराए तहाविहेणं विसुद्धभावेणं / मरिऊण समुप्पमा अप्पड्डी वन्तरी देवी // 71 // पुत्वभवे पिच्छन्ती विमंगनाणेण तम्मि मुणिसीहे / गच्छइ पओसमिच्छइ हन्तुं तं मुणिवरं णिचं // 72 // अह अप्प- जलप्पवहे वहपहे तस्स विहियगइमेए। तीए छिना जंघा सञ्जइ महाऽवरा देवी // 73 // गामन्तरंमि भिक्खागयस्स सा अन्नवासरे तस्स / रूवं सरम्मि दंसइ न्हायन्तं अवरसाहणं // 74 // रयणीए पडिक्कमणे गुरुर्हि वुत्तो इमो अरिहमित्तो / भद्द ! तुम आलोयसि नियदुच्चरियं न सम्मति // 75 // सुमरामि अहं क्खलियं न किंचि अलियं भणन्ति नय गुरूणो। चिन्तइ हल्लोहलिओ पावतरू एस किं फलिओ 1 // 76 // कहं होमि अहं सुद्धो ? बुद्धेहिं गुरूहि गुणसमिद्धेहिं / जो नाओ सपमाओ माई य अलियवाई य // 77 // मन्दरगिरिणा अट्टज्झाणेणं मन्थिए मणसमुद्दे / वाहसलिलप्पवाहो बाहिं बहुहा लुछइ तस्स / / 78 // पच्छावायपरद्धा दट्टणं तस्स दुक्खदन्दोलिं / सा पयडिय नियमुत्तिं साहा सर्व सदुश्चरियं | // 79 // तीए पडिबोहकए करुणारससायरेण तो गुरूणा / उल्लसियसुहालिद्धा पारद्धा देसणा तत्तो // 80 // रागो कडुयविवागो दुरन्तदुहचक्कघडणसुरूदओ / अदओ तेणकन्तो जीवाजी विणासेइ // 81 // तप्पञ्चयपावेणं ममइ कुजो. णीसु दुक्खलक्खाई। मरणसमुग्घाएणं लहइ दुरन्तेण पुणरत्तं // 82 // माणुस्सजम्मरयणं सुकुलखेत्ताइसंजुयं कहवि / लद्धं हारइ जीवो अणज्जकजेण रागेण / / 83 // तम्हा एसो रागो नागो इव जिणवरस्स वयणेण / मन्तेण निहायदप्पो कायवो अप्पमत्तेहिं / / 84 / / इच्चाइदेसणाए पडिबुद्धा वन्तरी तओ झत्ति / रागदोसविसाणं पसमणपीउसधाराए // 85 // काउं दुक्कडगरिहं सुगुरूणं पायपउममूलंमि / गिन्हइ सा संमत्तं खामह साहं अरिहमित्तं // 86 // धन्नोसि तुम मुणिवर।
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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