________________ बपन्तीप्रकरण पञ्चशतचोराणं प्रतिबोधनं ला सर्वेषां केवलज्ञानप्राप्तिः। इतिः / .206 // AAAAAHESARK वन्निजसि जेण मुणिराओ // 63 // रना पसंसिऊणं नमंसिऊणं मुणी महासत्तो / विनतो गुणसायर पसीय मुत्तोवलंमेण // 64 // कविलमुणीवि विहारं चाहिं तत्तो करेइ अपमत्तो / धम्मज्झाणकमेणं सुक्कज्झाणं समुल्लीणो // 65 // घणघायकम्ममुक्को केवलनाणेण पासइ अरन्ने / पंचसए चोराणं पुबमवऽभत्थचरणाणं / / 66 // चोहिकए करूणाए तेसिं तहिं जाइ एस मुणिसींहो / निस्संग तं दटुं चोरा एवं भणन्तेए / / 67 // तेणेहिंते निक्किचणस्स मह नत्थि किंचिवि भयंति / आगच्छइ एस मुणी तो एवं नच्चहस्सामो // 68 // एवं विणिच्छिऊण कविलमुणिन्दं भणन्ति तो तेणा / भट्टारय ! तं नच्चसु जइ जाणसि नच्चिउं सम्मं // 69 // तेणुत्तं तो वायह तालीओ तरलकरलया तुम्हे / जेणा हं नचन्तो तुम्हाण करेमि सन्तोसं // 7 // तो मंडलबन्धेणं समकालं दिन्ति ते जह ताला / तह नच्चइ गायन्तो कविलो धुवगीइयं महुरं // 71 // तद्यथा-अधुवे असासयंमि संसारंमि दुख्खपउराए। किं नाम हुज तं कम्मयं जेणाहं दुग्गई न गच्छामि / / 71 // तेसिं अक्खेवत्थं तारून तहय पुनलायनं / तरूणीणं सिंगारं कविलो वनइ अलंकारं // 72 // अखित्तसुणन्ताणं ताणं विक्खेवणथमइबहुयं / असुयंमि समुन्भए निन्दइ माणुस्सए भोए // 73 // अनाणतिमिरहरणे रविष्पहाकरणिकविलमुणिवयणे / तम्माणसंमि विसयइ विवेयकमलायरो झत्ति // 74 / सम्बुद्धाण ताणं जाइसरणेण गहियचरणाणं / कम्माण निजरणे उप्पन्नं केवलं नाणं // 75 / / मोहमहिनाहजोहं लोहं जिणिऊण कविलमुणिराओ / लंघियविसयग्गामो कमेण गच्छइ पुरि सिद्धिं // 76 // लोमे कपिलाख्यानकं समाप्तम् // रागोपि प्रेमानुबन्धः अपरपर्यायः, कारयति अनार्यचर्या प्राणिनः। तथाहि-पल्लवयति असौ विपर्यासविज्ञानं / ततो // 206 //