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________________ N // 193 // सर्वाङ्गसुन्दाः पूर्वकृतकर्मोदयात् पतिना त्यका। पत्तीए आणणनिमित्तं / कयमाइत्थं सवं भोयणतंबोलमाइयं // 107 // तो चित्तसालियाए रइया सिञ्जा अइवरमणीया / | विहिया तंबोलाइयअञ्चन्भुयभोगसामग्गी / / 108 // सिजागओ य चिट्ठइ देवकुमारो व दिवसिंगारो / एसो सागरदत्तो भजागमणं अहिलसन्तो॥ 109 // जावजवि न गच्छइ भजा सवंगसुंदरी ताव / तीए उइयं कम्मं अन्मक्खाणेण जं विहियं // 110 // अणुरूवपत्तसंपुन्नभोगसामग्गिसंपयं दटुं। वन्तरसुरेण कोऊहलेण तो दंसिओ पुरिसो // 111 // सागरदत्ताभिमुहं पत्ता सवंगसुंदरी नित्थ ? / भणिऊण एवं मत्वालंबाओ लहु अवकन्तो // 112 // तत्तो सागरदत्तो सोउं दद्वं च वयणमवक्कमणं / चिन्तइ एवं कृविओ दुस्सीला मे इमा भज्जा // 113 / / कयसंकेओ पुरिसो आगच्छइ निच्चमेव एयाए / पासंमि ममं द8 अन्ज सिग्धं अवतो // 114 // तो उविग्गो गन्तुं चिन्तइ ता सा सहीहि परियरिया / तस्सासन्ने पत्ता सो थको सुत्तविडेणं // 115 // तुह सहि ! भत्ता सुत्तो खिझुक्किरि केरिसं करिस्सामो / इय भणिऊण गयाओ नियनियगेहेसु सबाओ // 116 // खट्टाए उवविट्ठा सा पुण गन्तूण पइसयासंमि / तो उट्ठिऊण एसो उवविडो अन्नहाणम्मि // 117 // अह चिन्तियं च तीए कि रूट्ठो मज्झ वल्लहो ? एसो / नय किंपि कयं खूणं मायापित्तेहिं एयस्स // 118 // पणए अविणया रोसो जायइ दइयस्स सो कओ नेव / अखणिजंततलाए मगरो चिय पढमं पविट्ठो // 119 // मुश्चामो सयणीयं किं ववसइ ? ताव एस पिच्छामि / अह उद्वियाए तीए सयणीए तयणु सो सुत्तो // 20 // चिन्तइ मणेण एसा जो किर पाणाण नायगो होही / तलिसियं च एयं हाहा मे कम्मपरिणामो // 21 // अह मुश्चइ नीसासे उन्हुन्हे दइयरोसजलणस्स / कलसीकयआसामुहधूमसिहाविन्ममे एसा // 22 // रूयमाणीए तीए विरहदवो अंसुवारि AGARCASTEROICS // 193 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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