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________________ // 187 // परिणयानन्तरं विधवा जाता तत्पित्रा स्वगृहे गन्तूणं पइणा सह ठाइ जाव दिणदसगं / तत्तो पिउणो गेहे जा पत्ता ताव सम्पत्ता // 8 // पइणो मयस्स वत्ता केण व रोगेण दिवजोगेण / तो रोइउं पवत्ता तह जह रोयइ कुडम्बंपि // 9 // धणसिद्धि विलवन्तं दट्टणं दुहमरेण अक्वन्तं / धरिऊण धीरिमं तो भणइ इमं धणसिरी धूया // 10 // मा माइ ताय रोयह कम्मफलं अम्ह तुम्ह को दोसो ? / ता मा मुज्झह बुज्झह उज्झह सोगं मम करणं // 11 // तो उच्छंगे चित्तुं भणइ पिया पुत्ति ! निष्फला जाया। मज्झं मणोरहा ऊसरम्मि जह वावियं बीयं // 12 // ता पुत्ति ! मज्झ गेहे कम्मं मा कुणसु किंपि ताव तुमं / कप्पडियतडियदीणाइयाण दाणं पयच्छेसु // 13 // पच्छिमभवंमि तुमए न विइन्नं तेण नेह ते भोगा / जेण जणमि पवाओ अवियन्नं लब्भए नेव // 14 // दियहाणि कइवि सोगं काउं तो नियनियेसु कजेसु / लग्गो सबोवि जणो विसुद्धसीला धणसिरीवि / / 15 / / भद्दकरिणि व वियरइ दाणं दीगाइयाण निच्चंपि / सयणाणं वच्छल्ले रइयरूई सल्लइवणंमि / / 16 / / परलोयं पत्तेसु जणणीजणएसु धणसिरी दुहिया / धणवइधणावहेहिं भणिया तो बन्धवेहिं इमं // 17-19 // बहिणि तुम मा खेयं कुणसु विसायं च अहव संतावं। जं अम्हघरलच्छी अन्भुयसुहकारिणी निच्चं // 20 // सिलहिमसेलतुल्ला तुमं सि जं बहिणि भरहवासंमि / अन्नाणं अम्हाणवि अलंघणिज्जा तओ होसि // 21 // इय बन्धवेहि एसा अमियरसासारसारवयणेहिं / पनविया पल्लविया सवंग कप्पवल्लि व // 22 // तो सविसेसं दाणं दिन्ती सुमणोवियाससोहिल्ला / जससुरहियसबासा पूरइ तक्कुयजणाणाऽऽसं / / 23 / / अह पुनपरिणईए तीए गेहम्मि इन्ति वयणीओ / भिक्खट्टा अन्नदिणे पडिलाहइ सावि सन्तुट्ठा // 24 // पुच्छइ धम्मतत्तं वइणीओ बिन्ति कप्पए नऽम्हं / कहिउँ धम्मकहंपि य भिक्खायरियापविट्ठाणं // 25 // वेसमणधणियगेहे चिट्ठइ अम्हं पवित्तिणी भद्दे ! / सा धम्मकहं तुम्हें कहिही | दानादिकधर्मे नि योजिता। का॥१८७॥
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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