________________ // 157 // अदत्तादानोपरि दुर्ललितगोष्ठिदृष्टान्तः। GICANSAR पारपरायणाः सहन्ते शीतातपतृष्णाबुभुक्षापराभवादिक्लेशं, नानुभवन्ति सुखलेशं / धनमूर्छया हि संपादयन्ति संदेहदोलाधि- रूढानान्तरमाणानिति / परद्रव्यापहारः प्रयच्छति प्राणिनां महतीं दुःखपरम्पराम् / अतः कथमिव अदत्तादानं न भवति महापापस्थानं / अन्यच्च परद्रव्यापहरणं प्रयच्छति कारागारं, वितरति दुःखसंभारं, ददाति प्राणापहारं, झटिति उद्घाटयति दर्गतिद्वारं // किंच-सयलसुहपावयाणं ताविकनिबन्धणं मणे काउं / परदबहरणपावं मुणन्ति मुणिणो महादावं // 1 // छेयणमेयणताडणबन्धणमरणाइ दवहरणेण / पावन्ति जिया सहसा जह एसा दुल्ललियगोट्ठी // 2 // तथाहि कमलं व वसन्तपुरं लच्छीलीलागिहं पुरा आसि / रायकरप्पसरेणं अच्छरियं जमिह सवियासं // 1 // सत्तेक्षणो विकमपंकेरुहपरमंडलपयावो / अरितिमिरनियरहरणो जियसत्तू आसि तत्थ निवो // 2 // पुत्वभवजियपुन्नपभावओ पवररिद्धिसंभारा। थेरी वसन्तसेणा आसि तया तत्थ बुद्धिमई // 3 // जूयाइवसणसत्ता तरूणतरट्टाणभट्टचट्टाण / हुत्था तम्मि य समए तम्मि पुरे दुल्ललियगोडी // 4 // आबालकालमुणिपुंगवाण चरणारविन्दसेवाए / चोरिक्कयायनियमो सावयपुत्तो य तत्थासी // 5 // सन्तो दन्तो सन्तो मायापित्तेहिं मोहमूढेहिं / विसयाऽऽसतिनिमित्तं खित्तो दुल्ललियगोडीए // 6 // अह सा रिद्धिसमिद्धा थेरी एगम्मि ओसवदिणम्मि / जेमावइ नयरजणं विच्छड्डेणं सबहुमाणं // 7 // तो रयणीए तीए गेहे गन्तूण दुल्ललियगोट्ठी। मुसइ धणं पुण एसा पत्तेयं ताण पाएसु॥८॥ लंछणममुणिजन्ती करेइ सरसेण मोरपिच्छेण / पणमन्ती जम्पन्ती पुत्ता मा मुसह मज्झ घरं // 9 // सावयपुत्तो एक्को न लंछिओ जेण जावजीवपि / चत्तमदत्तादाणं सुहगुरुपयमूलवसिएण // 10 // तो जायंमि पभाए रायसहाए समेइ सा थेरी। विनवइ देव ! मुसियं मह गेहं नयरचोरेहि // 11 // इह वत्थत्वावि कहं ? नजन्ति 14 // 157 //