________________ श्री जयन्तीप्रकरणवृतिः / सत्यवादि तया नारदस्य सत्कारः। // 156 // HDDABA तुमं होसि // 35 // सच्चं सिषपुरमग्गो सग्गोवि य होइ सच्वयणेण / सबसुहाण निहाणं सच्चंच्चिय जाणसि तुमंपि // 36 // सञ्चासत्तो पुरिसुत्तमोति विकखायकित्तिसम्भारो। सोहग्गनिही जीवो अचुयसीलो जए होइ // 37 // कल्लाणमुत्तिजुत्तो मेरूगिरिन्दो व लोयमज्झत्थो। धम्मतुलाचउरासमगुरूत्ति तं लद्धमाहप्पो // 38 // तो कहसु नाणगुरूणा खीरकयम्बेण किमिह वक्खायं ? / तिवरिसियवीहिहिं अएहिं किं ? अहव छागेहिं ? // 39 // मोहमहागहगहिओ वसुरायनरयनयरपहपहिओ / भणइ असच्चं वयणं अएहिं छागेहिं जट्ठवं // 40 // रूट्ठकुलदेवयाए असञ्चवयणत्ति एस वसुराया / सिंहासणाउ सिग्धं निवाडिओ धरणिवम्मि // 41 // धिक्कारिओ जणेणं महयापावेण भारिओ झत्ति / पंचत्तं सम्पचो पत्तो नयरम्मि सो पावो // 42 // सक्कारिओ य बहुहा लोएणं नारओ सुगइगामी / एसो करूणारामो सफलो चिय सच्चवाइत्ति // 43 // पवयगो पुण नयरा पहाणलोएहि मिच्छवाइत्ति / निवासिओ अरनं गच्छइ घेक्कारहयतेओ / / 44 // एवमसचं वयण पव्वयगवसूहि जंपियं जायं / कमसो अणजवेओप्पत्तीओ पावट्ठाणति // 45 // अदत्तादानं पुनः तृतीयं पापस्थानं // धनं हि प्राणिनां बाह्याः प्राणाः। तदुपबृंहिता एवांतरा अपि प्राणाः चिरकालं स्थितिभाजो भवन्ति / धनार्थितया हि जीवाः प्रतिपद्यन्ते दास्यं, लजां परित्यज्य धनिनां पुरतः कुर्वन्ति लास्यं, अवन्ति चटूनि / अग्रत्तो धावमानाः प्रवर्तयन्ति पदानि पनि, प्रविशन्ति संग्राम, परिभ्राम्यन्ति ग्रामानुग्राम, व्रजन्ति देशान्तराणि, श्रयन्ति विवराणि, आरोहन्ति गिरिशिखराणि, तरन्ति वारांनिधि, अहर्निशं प्रतिपद्यन्ते सेवया सदा संनिधि, विशन्ति स्मशाने, निश्चला भवंति अर्थप्रदायिमंत्रसाधनाय ध्याने, धमन्ति धातून , पीडयन्ति जंतून् , क्रीडन्ति द्यूतेन, खेलन्ति साधं घूभूतेन, सर्वथा अपरापरव्या SE // 156 //