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________________ // 155 // असत्येन वसुनृपो | गोट्ठीए चिट्ठइ सावह नरक नारण भणियं न होइ एयति जाग रूओ विसंवाओ // 24 // कारून गतः। निच्चं चिद्रह गयणमि एस निवचंदो। एवं कित्तिनिमित्तं निवाइया सिप्पिणो सब्वे // 14 // पवयगनारयावि हु विहिणाऽवेइ निएस गेहेस / पाढन्ता सिस्सगणं निन्ति अणेहं सिणेहेण // 20 // एगमि दिणे दडे पत्वयगं एइ नारओ। गेहे नेहेणं गोदीए चिह सविहे चिरं कालं // 21 // पञ्वयगेणं तत्थ य सुणमाणे नारयमि वक्खायं / सिस्साणं वेयपयं अएहिं छगलेहि जदुत्वं // 22 // तो नारएण भणियं न होइ एयंति जेण इत्थ अया / भणिया गुरुहिं पुवं तिवरिसिणो वीहिणो चेव // 23 // मणियन्वयावसेणं बद्धामरिसाण ताण संजाओ। पन्चयगनारयाणं अइवगरूओ विसंवाओ // 24 // कारूनखीरजलही जीवविधायस्स वारणे रसिओ / जीहच्छेयपइन्नं करेइ अह नारओ तत्थ // 25 // एत्थ विवाए जाए अम्हाण पमाणमेस नरनाहो / एसो हु सच्चवाई सिद्धो अम्हं सहज्झाई // 26 // सुच्चा विवायमेवं जणणी पुत्तस्स पिच्छइ अवायं / तो कम्पमाणहियया पवयग भणइ एगन्ते // 27 // वच्छ ! पइन्ना तुमए कीस कया ? नारएण सह एवं / अलियं चिय जं वयणं अएहिं छगलेहिं जन्नति // 28 // नारयवयणं सचं जाण मए णेगहावि तुज्झ पिया / वक्खाणन्तो निसुओ अएहि वीहीहि जट्ठवं // 29 // पव्वयगेणं भणियं माइ तुमं कीस खेयमुबहसि ? / कम्माणुसारिणी जं मई सई परिणइ होइ // 30 // रयणीए वसुरायं निहुयं गन्तूण भणइ तो जणणी। नारयपवयगाणं वेयपयत्थे विवायमि / / 31 // जीहच्छेयपइन्ना तुम पमाणंति इत्थ पडिवनो। जह होइ सच्चवाई महपुत्तो तह करिजासु // 32 // इय वुत्तो वसुराया महनाणगुरुस्स पणयिणी एसा / एवं दक्खिन्ने] पडिवाइ झत्ति तव्वयणं // 33 // जाए पभायसमए निवम्भि अत्याण मंडवासीणे / पवयगनयरलोए समागए नारएणेवं // 34 // भणिओ वसुनरिन्दो सच्चबयणोसि तं जए सिद्धो / वेयज्झयणे अम्हं सहअज्झाई // 155 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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