________________ जयन्ती प्रकरणपतिः / सत्यस्य : व्याख्या असत्ये वसुनृपोदाहरणम् / // 154 // निमित्तं सचंपि य तं हवइ अलियं // 4 // उक्तंच-"अलियं न भासियवं, अस्थि हु सचंपि जं न वत्तत्वं / सच्चंपि होइ अलियं जं परपीडाकर वयणं" ||5|| दक्खिन्नेणवि जीवा अलियमखित्तमित्तदोसेण / वसुराय व निवायं लहन्ति नरयम्मि उववायं // 6 // तथाहि-जम्बुद्दीवे भरहे सुत्तिमई पुरवरी पुरा आसि // सुत्तिमईसु कइकहा जहा तहा विबुहसुहहेऊ // 1 // अभिचंदो तत्थ निवो निहोसो होइ जस्स करपसरो। भुवणच्छेरयभूओ पयावमहिमं पयासन्तो // 2 // तस्स सुओ वसुनामो विहावसू वइरदरदारूनिद्दहणो। अवरावरकीलाहिं समलंकियतेयसम्भारो // 3 // खीरकयम्बोझाओ पाढइ वेए नरिन्दकयपूओ। नियसुयपव्वयनारयसहियं वसुनामनिवकुमरं // 4 // अन्नदियहम्मि तेसिं तिन्हं उज्झायपायमूलम्मि / वेयज्झयणरयाणं अन्भासेणं गयणमग्गे // 5 // वच्चन्तेहिं विजाचरणसाहूहि भणियं वयणमिणं / एगो उड्डगामी नरयगई दोन्हमेएसिं॥६॥ खीरकयम्बो सुच्चा एवं संवेगमग्गमुवइन्नो // चिन्तइ मुणिन्दवयणं न अन्नहा होइ कड्यावि / / 7 // यत उक्तम्बालया जं च जम्पन्ति, जम्पन्ति साहवो सच्चवाइणो / जाइ उप्पाइयाभासा न सा हवइ अन्नहा // 1 // तो एस उवज्झाओ खमाइगुणरयणरासिपडिपुत्रं / चारित्तजाणवत्तं आरूहिउं तरइ भवसिन्धुं // 8 // अहिचन्दनरिन्देणं नियरजे अहिसिंचिओ वसू पुत्तो / रजसिरिं उवभुंजइ विक्कमगुणनीईए अणुरतं // 9 // अह अन्नदिणेऽरने, दिह्रो पारद्धिएण हरिणजुवा / तो तम्मि झत्ति मुक्को पच्छाहुत्तं वलइ बाणो // 10 // पुणो बाणो कहमेस वलिओ जो सवयावि अक्खलिओ / इय चिन्तन्तो पिच्छइ गन्तूणाऽऽयासफलिहसिलं // 11 // तो वाहेणं रनो निवेइयं रायजोग्गमेयन्ति / तो पच्छन्नं राया आणावइ तं सिलं झत्ति // 12 // सिप्पीणं समप्पइ तेहिं वि निप्पाइयम्मि रम्मम्मि / सिंहासणे निविट्ठो नजइ राया नहासीणो // 13 // सच्चेण चिय 154