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________________ बयन्तीप्रकरणपतिः / प्राणिवधविरतौ बन्धुमती|दृष्टान्तः। // 15 // अष्टादशपापस्थानः जीवाः कर्मगुरुत्वं कुर्वन्ति / तत्र प्रथमं पापस्थानं प्राणिवधः / प्राणिवधस्थानके जीवा हया रोपयन्ति कमपि पापपादपं, यस्मिन्नामूलतः समुत्पद्यन्ते तीक्ष्णकठिनकंटकास्ते, यैः परितः प्रकीर्णैर्दुर्गतौ विद्यमानाः सहन्ते प्रभृतं परितापं / तथा च-प्राणिप्राणवधे जीवा, लभन्ते तद्वन्धः मुहुः। न क्वचित् कोद्रवरुप्तैः शालिबीजादयो भुवि // 11 // अन्यच्च-वहभारणअन्मक्खाणदाणपरधणविलोवणाईहिं / सवजहन्नो उदओ दसगुणिओ एकसि कयाणं // 12 // पाणिवहो नरयपहो पावट्ठाणं जिणेहिं पन्नत्तो / पढमं दुहदवहेऊ वंसकुडंगि व अहरूद्दो॥ 13 // जीवाण विणासेणं परिवडियपवगुरूपवाएसु / हत्थठिएसु न हवइ परलोयपसाहणोच्छाहो // 14 // सो चाओ सलहिज्जइ जस्सि जीवाण कोडिसंघडणे / परलोयसाहापत्थं सन्धेजइ सरलया सम्मं // 15 // सवेसि जीवाणं पाणच्चिय वल्लहा जओ सग्गे / सक्को इच्छइ जीवियममिज्झमज्झम्मि किमिओवि // 16 // वसणेवि पाणदाणं कुणइ कुविन्दो व जो कलाकुसलो। सो संचेइ गुणरासिं दयोवलंमेण सुहएण // 17 // तम्हा जीवाविराहणं नियमुच्चिय सुगइकारणं होइ / परलोए इहलोए निम्मलजसपसरहेऊवि // 18 // चलजियघायविरया विसुद्धसम्मत्तपालणे निरया / बन्धुमई सिद्विसुया पसंसणिज्जा जहा जाया // 20 // तथाहि-आसि पुरा संखउरं नयरं परहयपुरवरसमाण / रिद्धीए अहियं पुण सया सईहिं अणेगाहिं / / 21 // होत्था तत्थ नरिन्दो महावलो रिउबलस्स निद्दलणो / अत्थिजणदिन्नदाणो अवरावरहुन्तकल्लाणो // 22 // सिट्ठी सागरदत्तो आसि तर्हि सायरू व गंभीरो / लच्छि व सया सहया भञ्जा पुण सम्पया तस्स // 23 // ताण सुओ मुणिचन्दो सोमो निम्मलकलाहि परिकलिओ / मित्तोदयम्मि न पहावहारमेसो लहइ किन्तु // 24 // विणयगुणरयणसहिया सुहिया दुहियावि ताण बन्धुमई / पइदिवसं मुणिपुगवपय AKALAMAUSAMACHAR
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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