________________ // 149 // BAEC% 95 भावनाख्यानकं समाप्तम् / जयन्त्या सम्मइंसणरयणं गारेणिव संसएण अणुविद्धं / परमत्थऽसाहणेण भवद्दोगच्चं हरइ नेव // 1 // तारयमज्झगोवि हु प्रश्नेऽष्टादपडिपुत्रकलोवि चित्तजुचोवि / दोसायरोत्ति भन्नइ जहा कलंकेण सोमोवि // 2 // तह संसएण जिणवरपवयणबहुमाणगुण शपापकलाबोवि / सम्मदंसणमोहं न हरइ सम्म जडभावो // 3 // इय चिन्तिउं जयन्ती रहसभरोम्मिन्नबहलपुलयंगी। जीवाइ स्थानकवत्थुविसयं पयडइ संसयमह कमेण // 4 // भयवं जहग्गिजाला धूमसिहा वा सहावओ चेव / उ8 चरन्ति सबे जीवावि हु वर्णनम् / जन्ति तह चेव // 5 // किन्तु घणकम्मचिकणलेवगुरुत्तेण जन्ति अहरगई / तुम्बीफलं व सलिले बहुमट्टियलेवजोगेण // 6 // तमिह मुरुत्तं जीवा कुणन्ति जिणराय ! हेऊणा केण ? / इय विणयपणयपणया कहन्तरे पुच्छइ जयन्ती // 7 // तथा च सूत्रं-पुच्छइ कहावसाणे गुरुयत्तं कह कुणन्ति जिण जीवा / वीरो भणइ जयन्ती अट्ठारस पावट्ठाणेहिं // 2 // तथाहि-पाणिवह 1 मुसाबाए 2 अदत्त 3 मेहुण 4-5 परिग्गहे। कोहे 6 माणे 7 माया 8 लोमे पिज्जे 10 दोसे य 11 कलहे य // 3 // अभक्खाण 13 अरह 14 पेसुन्ने 15 तह परपरिवाए 16 / मायामोसे 17 मिच्छादसणसल्ले 18 य अट्ठारे // 4 // व्याख्या-भगवान् वीरजिनेन्द्रो जयन्त्या भाविकया जीवानां कर्म-गौरवकारणं पृष्टः सन्नम्यधात् , यदुत जयन्ति ! IR // 119 // %EC