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________________ श्री *AR | श्रुत्वा जयन्तीप्रकरणवृतिः / // 132 // जीए मिच्छमहंधयारहरणे आइच्चबिंबाइयं, संसारोहवहंतजीवविडविप्पालंबलीलाइयं // 88 // सम्मत्ते उपलंभगोयरगए चारित्तलच्छि विणा, द्वाणं सबदुहाण खिजइ कहं संसारदोगच्चयं ? / चिच्चा पुत्तकलत्तमित्तविसयं मोहं महापावयं, पवजं पडिवजिऊण सुहयं साहेइ सिद्धिं तओ // 89 // जेणेसा असईकडक्खतरला लच्छी मणोमोहनबल्लीगुंफसहोयरी पणयणी मुक्खपहे रोहिणी / बंधो बंधुजणो गुणेहि बहुहा संसारकाराहरे, भोगा रोगसगोत्तया असुईणो तारुभए भंगुरे // 9 // सामाग्गि सुकुलाइयाण दुल्लहं लहिऊण नच्चा भवं, दुक्खाणं खणिमेव मोक्खयसुहं अचंति एगतियं / हेउं तस्स जिणिंदसासणमिणं सो वि य सव्वायरा, निस्संगाण मुणीण पायकमलं संपप्प पत्तोजमा // 91 // चारित्तं पडिवअिऊण विणयं कुवंति जे सबहा, ते जीवा सुगुरुप्पसायवसओ सिद्धतपारंगया। सुक्कज्झाणयासणेण सहसा निद्दडकम्भिधणा पत्ता केवलनाणदंसणधरा सिद्धिं पुरि सासंयं // 92 // इय धम्मदेसणाए भवियणकुमुयाण चंदजुण्हाए / अवहरियमोहतिमिरा सिवपुरमग्गे पवजंति // 93 // तत्तो विणीयपुत्तो चिंतइ एसो जयत्तए देवो / देवाहिवो न अन्ने मज्झं विणयारिहो एस // 94 // इय चिंतिऊण हरिसप्पसरियरोमंचकंचुइगत्तो / विनवइ जिणं वीरं विणीयकुलपुत्तओ एवं // 95 // देवाहिदेव ! तुह पायसेवरसिओ भवामि अणवस्यं / विणएणं तिविहेणं सुकयमहं अजइस्सामि // 96 // तो भयवयावि भणिओ देवाणप्पिय अहासुहं तुज्झ / न विलंबो कायवो पियराईणं सिणेहेण // 97 // तत्तो विणीयपुत्तो भद्दो सो विणीयपरिणओ झत्ति / वीरजिणदिनदिक्खो सिक्खं गिण्हइ सुगइगामी // 98 // तो सो कमेण जाओ गयराओ साहुकुंजरायरिओ / केवलबलपरिकलिओ उम्मूलइ भववर्ण सहसा / / 99 // पियराणवि विणएणं उत्तरउत्तरपयंमि सुपइट्ठो। एस पसिद्धो कमसोऽणुत्तरपयसंपयं पत्तो // 100 / / देशानां कुलपुत्रकेण गृहीता दीक्षा विनयेन मोक्षप्राप्तिश्च / / 132 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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