________________ श्री जयन्तीप्रकरणवृतिः / // 128 // RSCIRECCASIC देवं / तुम्हाएसेण अहं सम्मं विणएण सेवेमि ? // 27 // पुट्ठो तणएणेवं जणओवि चिन्तह निउणं / महपुत्तो गुणवन्तो | विनयेन रायकुलावजओ होउ // 28 // उक्तं च // "दृष्टव्यं राजकुलं दृष्टव्या राजपूजिता लोकाः / यद्यपि न भवन्त्यर्था भवन्त्यनर्थ- प्रसन्नीकृता प्रतीकाराः" // 29 // एएण सुवंसेण आरुढगुणेण नमणसीलेण / साहिजइ परलोओ मह पुत्तेणं सुचाएण // 30 // एसो ग्रामपतिहु दाणवरओ सामी ओलग्गिओ सुहं देइ / इयं चिंतिऊण पिउणा भणिओ सेवसु इमं वच्छ ! // 31 // आइट्ठो जणएणं सामन्तविणीयकुलपुत्तओ तओ निच्चं / सेवंतो विणएणं पसन्नदिढि कुणइ सामि // 32 // तयणु निरंतरमहिए सामिपसायम्मि मण्डलेखीरजलहिम्मि / एइ सयंवरलच्छी कण्हस्स व तस्स गेहम्मि // 33 // अह सोवि य गामसामी य महं- श्वराः कुलतसामंतदयवयणेण / कुलपुत्तएण सद्धिं गच्छइ तुरियं पुरे तस्स // 34 // तो पुरपरिसरवरआरामुजाणकूववावीहि / दिद्वेहि लापुत्रेण / विम्हइओ चिंतइ कुलपुत्तओ एवं // 35 // जस्स किल परिसरोवि य सोहं सग्गंगणस्स लंघेह / तं पुरवरं पुरंदरपुराओ अहियं अहं मन्ने // 36 // पिच्छंतो पुरलच्छि अणमिसनयणो विणीयकुलपुत्तो / रायकुलं संपत्तो द8 सामंतमइगरुयं // 37 // चिन्तइ विम्हियचित्तो एसो देवो महडिओ जेण / सेविजंते तेणं इमम्मि पुत्रं बहुं होई // 38 // सामच्छिऊण एवं आपुच्छिय गामसामिपियराई। ओलग्गह सामंतं तहा जहा कुणइ सुपसन्नं // 39 // लच्छी सामंतेणं सम्भं आराहिएण तातस्स / दिना जीए कीरइ गरुओ सपरेसि उवयारो // 40 // यमुहेणाहूओ सामंतो अह कयावि नयरम्मि। मंडलवइणो गच्छइ तेण समं सो विणीओवि // 41 // मंडलवइस्स नयरे सामंते अह कमेण संपत्ते / पुरपरिवारसमिद्धिं द8 चिंतइ विणीओवि // 42 // मंडलवइणो आणं सीसे सेसं व धरइ सामंतो। सिद्धिस्थिमिओ P128 //