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________________ // 127 // 645OCCASSECCASIX मणवयणकायविणयं करेइ सो ताण पुन्नट्ठा // 11 // उक्तं चान्यत्रापि // "दो चेव देवयाई माया पियरो य जीवलोगम्मि। मातृपिततत्थवि पिया विसिट्ठो जस्स वसे वट्टए माया // 12 // " सेस व सिरठियाए निचं चिय पियरदेवआणाए। न हवइ तस्सु- | विनयादिवसग्गो सज्जइ सबो सुयणवग्गो // 13 // पियराणं विणएणं परमहिमेणं पवड्डमाणेणं / कुंदकलिय व उज्जलकित्तीओ तस्स प्रवृत्तकुलवियसन्ति // 14 // संवण्णणेणं लोए तह हवेइ सोहग्गं / नारायणि व लच्छी जह तम्मि समेइ साणन्दा // 15 // जम्मि पुत्रकस्य कुले कमले इव नालगुणेहिं पवड्डमाणेहिं / होइ अखंडं वित्तं तम्मि सिरी वसइ किं चित्तं? // 16 // उक्तं च // "गुरवो विनययत्र पूज्यंते यत्र धान्यं सुसंचितं / अदन्तकलहो यत्र तत्र राजन् वसाम्यहं // 17 // " विणयावजियहियओ लोए जो अहि- विषया यपक्खवाओ य / पुरिसोत्तमलच्छीवि हु गरुडस्सवि तस्स सविहम्मि // 18 // पियराणं जो विणओ सो विणओ फलभरेण विचारणा। कप्पतरू / जम्मन्तरसमन्जियपुन्नाणं होइ जीवाणं // 19 // तह निक्कारणवच्छलपियरजणो होइ दुप्पडीयारो / तविणओ उचिय च्चिय सम्मं विबुहेहिं कीरन्तो // 20 // भणियं च // “दुःप्रतिकारौ मातापितरौ स्वामी गुरुश्च लोकेऽस्मिन् / तत्र गुरुरिहामुत्र च स दुष्करतरप्रतीकारः / / 21 // " तं वच्छ कुलपईवो सगुणदामालोऽसि नेहभरपत्तो / अइसाइकजलग्गो धवलयसि कुलं तयं चित्तं // 22 // एवं पसंसेजंतो ससयणसुयणेहि सव्ववयणेहिं / जणयजणणीण विणयं करेइ कुलपुत्तओ धणियं / / 23 // अह ऊसवम्मि कम्मिवि निमन्तिओ गामनायगो पिउणा / एइ गिहे कुलपुत्तयजणओ विणयं कुणइ तस्स / / 24 // जणयकयं पडिवनिं ददृणं तस्स गामसामिस्स / चिन्तइ सरलसहावो विणीयकुलपुत्तओ एवं // 25 // मह पिउगोवि हु गुरुओ एसो है देवो विसेसपुजो य / तो होइ बहु पुन्नं सेविजन्तम्मि एयम्मि // 26 // तयणु विणयेण जणयं आपुच्छइ ताय ! किं इमं D127 // 4%ECHANICAL
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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