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________________ 29 // % विराजश्रेणिकमहाराज % सेवा %* नूणं एसो अहिओ महादेवो // 43 // तो पुच्छइ सामंत किमहं सेवेमि मंडलियदेवं ? / तुम्भेहिं अणुनाओ बहपुनोवञ्जणासत्तो // 44 // ता सामंतो मन्नइ एसो खलु मंडलेसपयसेवी / निम्मलसीलो सवं साहिस्सइ अम्ह कजाई // 45 // ता इह चिढउ एसो अक्खोहो लोहवन्जियविणीओ / इय भाविऊण भणिओ सेवसु तं मंडलमहेसं // 46 // मंडलवइवि दिढि पसायधवलं खिवेइ अह तम्मि / पेमपरवसलच्छीलसंतवरमालसोहिल्लं ॥४७॥अह तम्मि मंडले जे अन्ने य मंडलियसेवगा रिद्धा / तस्स वियरंति दाणं अणुणयकुसला जओ भणियं // 48 // "सुवर्णपुष्पितां पृथ्वीं विचिन्वन्ति त्रयो जनाः / सूरश्च कृतविद्यश्च यश्च जानाति सेवितुं // 49 // " अन्यदपि उक्तं-"विनयेन भवति गुणवान् गुणवति लोकोऽनुरज्यते सकलः / अभिगम्यतेऽनुरक्तः ससहायो पूज्यते लक्ष्म्या // 50 // " तम्मि य समये राया रायगिहे सेणिओ सुरिन्दु छ / रजं पालइ पइदिणं सुपवसंदोहसोहिल्लो // 51 // तस्साएसा मंडलवईवि कुलपुत्तएण तेण समं / रायगिहे सिग्धं चिय गच्छइ परिवारपरियरिओ // 52 // रायगिहे पायारं कणयमयं फुरियकन्तिसंभारं / दणं परिभावइ विणीयकुलपुत्तओ एवं // 53 // नूणं कल्लाणमओ सेणियराया महड्डिओ देवो / जस्स पुरे विसालो सालो कणगेण निम्माओ // 54 // सोहम्मसहासोहे अत्थानविप्फुरन्तकिरणोहे / अंडलियदंडनायगमहंतसामंतसंपुग्ने // 55 // रयणमयमउडकुंडलहारावलिविष्फुरंतसिंगारं / दर्से सेणियरायं मणिमयसिंहासणासीणं // 56 // मन्नइ विणीयपुत्तो एसो सामंतमंडलीवईण / पुञ्जो थिरप्पइट्ठो महप्पभावो महादेवो // 57 // पुन्नोवजणहेउं तोऽहं वड्डन्तविणयपरिणामो। पुचिल्लाण गरुयं देवं सेवे इमं चेव / / 58 // इच्चाइ चिन्तिऊणं एसो सेवेइ सेणियं रायं / विणयपुण्णउत्तमंगो मंडलवइणा अणुभाओ // 59 // चुजं पइप्पभायं अब्भहियरायपायसेवाए। कुवलयसहोय स्वीकृता कुलपुत्रेण / * HESARKE%
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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