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________________ // 91 // It जिनेन अहुणा गच्छामि रायगिहं // 334 // बीयंमि दिणे तइएवि तेण सवं कहं कहतेण / रयणवइणंगसुंदरिहियय विम्हयवसं नीयं // 335 // जेणेह वामणेणं अच्छरियं इह जयंमि वित्थरियं / सो सिद्धि ! तुम्हतणयावरोत्ति जिणरायभणियम्मि // 336 / / कथितः विन्नाणसायरे वामणम्मि अह लोयदिविसरियाओ। विम्हयरसभरियाओ पडंति सुयवीरचरियाओ॥३३७॥ तो सो मुहारविंदा |श्रेष्ठी, स रूवपरावत्तकारणं गुलियं / अवणित्तु णंगसुंदरियणवईणं हवइ पयडो॥३३८॥ पियदसणा उ जम्पइ मज्झ पिओ जच्चकंचणसवन्नो / अह वमियावरगुलिओ कंचणकंतीपुरो जाओ // 339 // तो पुच्छइ पुण सिट्ठी सायरदत्तो जिणेसरं भयवं / केण | भद्रः, सुनिमित्तेणेवं वामणरूवं कयमिमेण // 340 // तो दिवपुन्नपगरिससंपत्तकलाकलावकोसल्लं / पयडियकयंति अन्नं न कारणं किं|४ |पात्रदान पि नायवं // 341 // एवं जिणिन्दमणिए हिट्ठो तुट्ठो य सायरो सिही। गुरुरिद्धिवित्थरेणं वहूवराई घरं नेइ // 342 // दवा प्राप्त गुणस्यणरासिकोसो सहस्सकिरणुव एस निदोसो। सोहग्गेण उविंदो कलालओ पुनिमाचंदो // 343 // इय चिंतिऊण राया नर एतादृशीं चंदो देह वीरभद्दस्स / कमलसिरिं नियतणयं संतुट्ठो परमरिद्धीए // 344 // अह अन्नया जिणिंदो पुट्ठो हिडेण तेण नरवइणा / ऋद्धिम् / कहमेवंविहपुग्नं समजियं वीरभद्देण / / 345|| ता कहइ वीयराओ सदेवमणुयासुररायपरिसाए / इमिणा सुपत्तदाणा पुत्वभवे अज्जियं पुन्नं // 346 / / सिरिनिलये पुत्वभवे नयरे एसो खु आसि वत्थवो / उत्तमदिसो गिहित्थो पडुच्च सुगुणेहिं संकिन्नो // 347 // तस्सऽन्नदिणे एगो निबद्धतित्थयरनामसुहकम्मो / रायरिसी संपत्तो घरंग मासपारणए / 348 / / तो तस्स माणसे सो सच्छसहावोदयंमि रायरिसी / पसरतपक्खवाओ करइ रइं रायसुव // 349 // एयारिसा तवेणं विसेसदिप्पंतमुत्तिणो मुणिणो / दिणमणिणो इव निच्चं कुणंति दोसाण लहुयत्तं // 350 // अजं चिय सुविहाणं जायं अम्हाण पुन्नवंताण / CCRECTROCACAD // 91
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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