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________________ // 89 // ACANCIALAMAILOCA%AEX // 302 // पुच्छइ य पणयणि सरहससिंगारसारपरिवारो। जाइ कहिं ? विजाहरलोओ साणंदसंभारो // 303 // अह साहह रयणवई पिययम ! एयम्मि पवए अस्थि / नामेण सिद्धकूडं सिहरं सोहग्गसिरिवासं // 304 // तत्थ य सिद्धाययणं गयणयलुल्लिहणलालससिहग्गं / अठुत्तरसयसासयमणिमयजिणबिंचरमणीयं // 305 / / तत्थ जिणवंदणचणमहामहं काउमेस जाइ जणो / जं जिणवराण भत्ती संपत्ती सव्वसोक्खाणं // 306 / / अम्हाण जइवि बुद्धो देवो सिद्धो तहावि जिणपूयं / दट्टुं वयमवि जामो इय जंपइ वीरमद्दोवि // 307 / / अह सिद्धाययणगए तंमि थुणंतम्मि जिणवरगुणोहं / सरससरेहि विजाहरलोयणकमलाई वियसंति // 308 // सो जणओ सुहजणओ जस्सेसो होइ गुणनिही तणओ / एसो हु अमियवाणी इमस्स जणणी रयणखाणी // 309 // एवं लद्धपसंसो हंसो इव सुद्धपक्खअवयंसो। विजाहरमणकमलायरम्मि लीलाई एसो // 31 // पञ्चागओ सगेहं विजाहरलोयलद्धजसपसरो। रयणवईए सद्धिं सुहेण कालं गमइ एसो // 311 // अवलोइजइ पुहवीगामागरनगरमंडिओदेसं / आगासगामिणीए विजाए जं फलं एयं // 312 // दट्ठवाणं दंसणमेव फलं होइ नयणकमलाण / अह अवरवासरे सो इय जंपइ पणयणीहुत्तं // 313 // तो पच्छिमरयणीए रयणवईए समनिओ एस | विजासामत्थेणं समागओ पउमिणीखेडं // 314 // समणीवसहिदुवारे मुत्तुं विजाहरिं तओ एस / लहु तणुचितं काउं एगते झत्ति संपत्तो // 315 // रयणवईविय चिंतइ वीरभद्दो गओ वि ललियगई / केणावि कारणेणं मंदो पञ्चागमे जाओ // 316 // हा सोम ! पाणपिययम ! अजरामर ! विरहदाणरसिओऽसि / मह कह ? करुणसरेणं इय विलवइ सा तओ धणियं // 317 / / | तो बाहिं समणीओ पियदंसणणंगसुंदरीओ य / आगंतूणं सहसा भणंति विजाहरिं एवं // 318 // किं सोयकारणं तुह ? लोकप्रीतिः संपादिता वीरभद्रेण, आकाशगामिन्या पद्मखेड नगरं प्राप्तं च। CCCCCCCOM ||89 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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