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________________ // 87 // पन्नत्तिदेवयाए सो / मुणिऊण वीरभद्दो भणिओ मियमहुरवयणेहि // 273 // पुत्त ! तुम मा सोयसु तुज्झ पियाणंगसुंदरी IA पत्ता / तीरम्मि फलयहत्था तावससंबोहिया संती // 274 // मरणमणं चईऊणं कुलवइपयपउमसंथववसेण / चिटुंती अक्खंडि. यसीला तुह संगमुम्माहा // 275 / / एगम्मि दिणे दिट्ठा वणफल वित्तीए दिवकन्तिल्ला / ता चिंतियं चऽणेणं एसा सक्खं मयणघरिणी // 276 // मयणस्स य गंघेण इत्थ चमिस्संति तावसकुमारा / मह गोउलम्मि पीयं मन्ने सन्माणपीयसं // 277 // तो कुलवइणा वुत्ता पुत्ति ! तुमं गच्छ पउमिणीखेडं / नवरं तत्थ भविस्सइ तुह वल्लहसंगमो नूणं // 278 / / जा किट्ठभूमिभागं तीए सह वुड्डतावसा इति / पुरपरिसरम्मि पत्ता अह सा एगागिणी वुन्ना // 279 / / जूहब्भट्ठा हरिणी विंदभट्ठव्व होइ जह करिणी / मन्नंती सुन्नदिसा जा चिट्ठइ सुगइदिष्टि व // 280 // ता पुनपगरिसेणं पेच्छइ सा तत्थ सोममुत्तीओ। बाहिं समागयाओ समणीओ तावसमणीओ // 281 // तप्पायप्पणयाए तीए पसरंति चाहसलिलाई / ससिकंतफलिहनिम्मलधवलप्पहदिहिजुयलाए // 282 // उवसंतपावतावा, आभट्ठा ताहिं समणीहि / कासि तुमं ? कीस पुणो करिसि ? असमाहिमच्चन्तं // 283 // जणणीण व ताण पुरो निवेइओ तीए निययवुत्तो। तो ताहि सा भणिया पसन्नवयणाहिं वईणीहिं // 284 // पिच्छेहऽणंगसुंदरि ! संसारो एस एरिसो चेव / हेयवो भवेहिं सुविइयतत्तेहिं सत्तेहि // 285 // अम्हारिसजीवाणं विसुद्धधम्मम्मि कोडिपत्ताणं / इहलोओ परलोको सिज्झिस्सइ किंतु निविग्धं // 286 // वसणम्मिवि च्छिद्देसुं | पूरिजंतेसु निम्मलगुणेहिं / दिढवत्थंतरसंगमसुहिया तं साविए ! होसि // 287 / / अहिउल्लसियदयाणं समणीण फुरंतभूरि-| 1 भीता। 2 वृन्दभ्रष्टा इव / 3 सुगतदृष्टिरिव / 4 तापशमन्यः / 5 प्रतिनीभिः / अस्थिरचित्तवीरभद्रस्य कथितो लीलारतिना पद्मखेटप्राप्तानङ्गसुन्दर्या वृत्तान्तः। // 87 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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