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________________ AE%E दारकेण समं धात्री पुर्यास्तात ! क्वचिद् गता। न ज्ञायते परं तात ! स्वयं जानीहि सरिया // 1426 // मणिपति ततस्तत्तादृशं श्रुत्वा वचः कीरेण भाषितम् / काष्ठः संकल्पयामास विस्मयाद् धुनयन् शिरः // 1427 // 71 // अहो !! यदर्थमी शि दुःखान्यनि सुखेप्सया / तस्याश्चेष्टितमीक्ष मद्भार्यायाः समीक्ष्यते // 1428 // / कर तद्यावदकृतस्वार्थ मामप्येषा निहन्ति नो। विप्राऽऽसक्ता हितं स्वस्मै तावदेव करोम्यहम् // 1429 // इति संचिन्त्य कीरोऽसौ ब्रज रम्याणि सेवय / काननानीति घृणया तेन सद्यो विसर्जितः // 1430 // काष्ठस्तु स्वधनं दीना-नाथसा(वा)य सर्वतः।स्वबन्धुभ्यश्च विश्राण्य निर्निदानं स्वपाणिना॥१४३१॥ कारयित्वा च जैनेन्द्रसद्मस्वष्टाह्निकाः पराः / कृतश्रीसंघपूजोऽसौ प्रावाजीद् गुरुसन्निधौ // 1432 // वज्राऽपि बटुना साध मा ग्रहीन् मेदिनीपतिः / इति त्रासाद् गता चम्पां यत्राऽसौ तत्सुतो नृपः // इतश्च काष्ठनामाऽसौ तपस्वी गुरुपार्श्वगः। बह्वधीत्य भ्रमन् प्राप्त-स्ता धम्पां दैवयोगतः // 1434 // तत्र भिक्षामटन् वज्रा-गृहमज्ञातचर्यया / कथंचित्प्रविवेशासा-वीर्यासमितिसंगतः // 1435 / / ततस्तं प्रत्यभिज्ञाय मा ज्ञासीन् मामयं वणिम् / इति बुद्ध्या तयाऽकारि यदहो!! तनियोधत // 4 अपि च-दवाऽलङ्करणोन्मिश्रा भिक्षां तस्मै सुसाधवे / चौरश्चौरोऽयमित्युच्चै-रूचे विनटनेच्छया // 1437 // // 71 ततस्तच्छन्दमाकर्ण्य रक्षकाः समुपाययुः / क्वासौ क्वासाविति प्रोच्चै--हिरन्तः समन्ततः // 1438 // AANT4291-Ag RESEALUAE
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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