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________________ RKARI ततस्तदुभावमालक्ष्य मध्यस्थैस्तैरगद्यत / फालं धतु किमिच्छा ते-ऽनडवनस्तीह संप्रति // 1055 / / वागविहीनोऽपि तत्तेषां वचो बुद्ध्वाऽथ संज्ञया / प्रत्यपद्यत मूर्नोऽसौ धूननेन मुहुर्मुहुः // 1056 // ततो भूयोऽपि तद्भावं शुश्रावयिषुभिर्जनान् / ऊचे कारणिकैः मोच्चः भो भो लोका! निशम्यताम् // अयं हि भद्रकोऽनड्वान् भवदाऽऽरोपिताऽयशः। क्षालनायेह सम्प्राप्तः फालं धतु स्वजिह्वया // 1058 // तदयं दीयते लग्नो निर्यन(द्दीप्रस्फुलिङ्गकः / फालोऽस्य रसनाप्रान्ते तिरश्चो धैर्यमीक्ष्यताम् // 1059 // इत्युक्त्वा यावदुत्क्लसो लोहपिण्डो ज्वलन्नलम् / आचकर्ष वृषस्तावद् जिह्वां भयविवर्जितः // 1060 // 2 तस्यानर्थस्याऽकार्येष वृषभः शोध्यतां ततः / नान्यथा श्रावयित्वैवं जिह्वायां स न्यधीयत // 1061 // तेनाप्यकीर्तितस्तेन जिहान्तेन स्वचेतसा / शुद्धत्वादभिया दः शीतश्चन्दनपङ्कवत् // 1062 // न चाऽनेन ज्वलदहिभासुरेणाऽपि तत्रसे / देहेऽथवा भवेत् कस्कः शुद्धः परिभवास्पदम् // 1063 // 2 ततस्तांतस्य संशुद्धिं वीक्ष्याहो!! साधु साविति / ऊचुर्लोकाः प्रशस्यः स्यात् कस्को वान विशुद्धिभाक् / तस्यास्त्ववर्णवादिन्या निन्दांचके जनोऽधिकम् / पापात्मानां हि कः कुर्यात् प्रशंसामथवा जने // 1065 // ततः कारणिकैरोषाद-नयैव हतोऽनया / धिया सा ताडयांचके कशाघातैः सुनिर्दियम् // 1066 // ताज्यमानाऽथ सद्भावं साऽवोचत्तत्पुरोऽखिलम् / मत्तस्य म्रियमाणस्य सद्भावस्स्यात् स्फुटोऽथवा // SANSA
SR No.600401
Book TitleManipati Rajarshi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambukavi, Bhagwandas Pt
PublisherHemchandra Granthmala
Publication Year1922
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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