________________ // 305 / / *38* युद्धे जित्वाऽपिता सुमित्रस्य | भगिनी चित्रगतिना *45 स्मित्वा चित्रगतिः प्रोचे लोहखण्डबलेन भोः / किं ? दृप्तोऽसि विगुप्यन्ति युद्धे निजबलोज्झिताः॥२४॥ उक्त्वेति विद्यया चक्रे स तत्रान्ध्यकरं तमः / तद्येन तमपश्यन्तो निश्चेष्टत्वं द्विपो ययुः॥२५।। अलक्ष्यो देवगतिवत्खड्गं चित्रगतिद्रुतम् / अनंगहस्तादाच्छिद्यादाय मित्रसहोदराम् // 26 // नीत्वा चक्रपुरे शुद्धशीलां निर्व्याजसौहृदः / सुमित्रस्याऽपयित्वा च वैताढयेगात्स्वपत्तने // 27 // | युग्मम् / / मायाध्वान्ते प्रशान्तेऽथानंगोऽद्राक्षीन्न हस्तगम् / खड्गरत्न (स्वविद्विपं) पुरश्चित्रगतिं च तम् // 28 // क्षणं विषादकलुपो ज्ञानि| वाक्स्मृतिपूर्णतः / स प्रासीदत् खड्गहरं भाविजामातरं विदन् / / 29 / / कथमज्ञातनामान्ववायः स ज्ञास्यतेऽथवा / सिद्धचैत्यपुष्पवृष्टिस्तं वदित्रीत्यगाद् गृहम् // 30 // अग्रेप्यासीत्सनिर्वेदः संसृतौ कुसृताविव / सुमित्रो जामिहरणवैधुर्यात्वऽभवद् भृशम् // 31 // राज्ये न्यस्य | * सुतं चित्रगतिमाह्वाय्य चाग्रहीत् / व्रतं सुमित्रः सुयशःसाधोगत्वान्तिके मुदा // 32 // स राजपिस्तप्यमानस्तीबं गुर्वन्तिके तपः।। प्रज्ञालः किश्चिदूनानि पूर्वाण्यधिजगे नव // 33 // गुर्वादेशादसावेको विहरन्नवनीतले / मगधेषु गतो ग्रामादहिः प्रतिमया स्थितः N // 34 // वैमात्रेयेण पब्रेन दैवात्तत्रेयुषेक्षितः / स साम्यरम्यसद्ध्यानलीनो मेरुवि स्थिरः // 35 // कृष्ट्वा बाणासनाद् बाण सोऽवधीत्तं o मुनि हृदि / मिलनायोत्सुको मन्ये स्वमातुनरकं गमी // 36 // मां निघ्नतापि नाघाति धर्मोऽनेन ममेत्यतः / कारिजयसाहाय्या| दुपकार्यप मित्रवत् // 37 // अपाकारि मयैवास्याऽदायि राज्यं पुरा न यत् / सर्व तत् क्षमतामेप शेपजन्तुगणश्च मे // 38 / / इत्थमारा धनां कुर्वन् संस्मरन् पंचमंगलम् / मृतः सुमित्रोऽभूद् ब्रह्मलोके सामानिकामरः // 39 // पद्मस्त्वगात्सप्तमोर्त्यां दष्टो दुष्टाहिना पुनः / | कालेन कुपितेनाहौ स मृत्वाऽकृष्यत ध्रुवम् // 40 // ज्ञात्वा मृत्यु सुमित्रस्याऽशोचीचित्रगतिभृशम् / चकार चाष्टमद्वीपचैत्ययात्रां विविक्तधीः // 41 // चत्रे यात्रोद्यमानन्दी नन्दीश्वरवरे तदा / विद्याधरगणोऽप्येत्याहत्पूजोत्सवमातनोत् // 42 // पुच्या समं रत्नवत्या A-ARPRASHAP // 305 //