________________ श्रीअमम // 524 // * विवेकिना / मलस्त्वस्य पञ्चदशकर्मादानी विशेषतः // 4 // अङ्गारशकटारामभाटकस्फोटजीवनम् / दन्तलाक्षारसकेशविषवाणिज्यकर्म जिनेश*च // 5 // असतीपोषणं यत्रपीडा निर्लाञ्छनं तथा / दवदानं सर-शोषो मलाः पञ्चदशाऽप्यमी // 6 // दुर्ध्यानस्यातरौद्रस्य प्रमादा- चरित्रम् / चरणस्य च / पापकर्मोपदेशस्य हिंसाहेत्वपणस्य च // 7 // पुष्पसार कुमार स्वशरीराद्यर्थदण्डप्रतिपक्षस्थितस्य च / त्यागादऽनर्थदण्डस्य तार्तीयं स्याद् गुणवतम् / / 8 // शिक्षात्रतानि चत्वारि तत्राऽपध्या दीक्षा नवजिनः / त्यक्तसावद्ययोगस्य मुहूर्त मुनिराजवत् // 9 // अनौपम्यस्य त्रिशुद्ध्या साम्यस्य पालनाद् भवेत् / गृहिणोऽप्यादिम शिक्षाव शात्सामायिकवतम् // 10 // युग्मम् // संक्षेपादिग्नतोक्तस्याऽध्वमानस्य दिवानिशम् / देशावकाशिकं शिक्षाव्रतस्याद् गृहिणोऽप- | रम् // 11 / / तृतीयं स्याच्चतुःपयाँ पौषधं तूपवासतः / स्नानादित्यागतो ब्रह्मचर्यादारम्भवर्जनात् // 12 // आहारवस्त्रपात्रौकःप्रदाना| दऽतिथौ मुनौ / स्यादतिथिसंविभागस्तुर्य शिक्षाव्रतं पुनः // 13 // पञ्च पश्चातिचारांचाऽमीषां सद्दर्शनस्य च / वर्जयन्नित्यशः सप्तक्षेत्र्यां भक्त्या धनं वपन् // 14 // कृपया चातिदीनेभ्यो यच्छंस्तीर्थ प्रभावयन् / गृहवास्यपि संसारवाड़िपारंगमो भवेत् // 15 // युग्मम् / / नयतेऽध्या मुक्तिपुरी सर्वसाम्यात्मकोऽद्भुतम् / अदवीयान् दवीयांस्तु देशसाम्यात्मको जनाः // 16 // तयोराद्रीयते धीरः साहसिक्यनिकेतनम् / पूर्वमेव द्वितीयं तु सुकुमारमनाः पुमान् // 17 // श्रुत्वेमा देशनां सूरेः पुष्पसारो नृपात्मजः / सर्वसाम्यमुपा-| सर्ग-१८ दित्सुराप्रष्ट पितराविति // 18 // लोकोऽयं तृणवेश्मेव जरामरणवहिना / आदीप्तः सर्वतस्तस्मात्का कष्टादवाप्यते // 19 // न चायं शक्यते विध्यापयितुं विषयामृतैः / प्रत्युत ज्वलति क्षिप्यमाणैस्तैस्तु घृतेरिव // 20 // निर्यातुमस्मात्तदनुजानीतं मां प्रियं सुतम् / / * // 524 // पितरौ विधुरौ स्नेहाद् व्याहन्तुं नाहतो युवाम् // 21 // यद्यस्ति मयि वात्सल्यं तत्प्रसद्यानुमन्यताम् / निर्गत्याऽस्माद्यथा यामि