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________________ श्रीअमम जिनेश // 512 // चरित्रम् / सूरराज | प्रति श्री लक्ष्मसेनेन बौद्ध धर्मस्वीकारार्थ प्रेषितो दुतः | क्षणभंगार्णवे यत्ते स्थितिः सर्वाप्यगाद् क्षयम् // 77 // बुग्मम् // अथ खयादृते प्राच्ये वासनाक्षणसन्तती / ताभ्यां च मन्यसे लोकव्यवहारव्यवस्थितिम् / / 78 // एवं तर्हि स्वप्रतिज्ञाहानिस्ते स्वयमागता / अभेदभेदानुभयैर्घटेते ते यतो नहि // 79 // तस्मादादीप| माव्योम नित्यानित्यं विभाव्यताम् / वस्तु वस्तुविदां मुख्यं मुश्चाऽनित्यकथां वृथा // 8 // त्रि०वि०॥ इत्थं निरुत्तरे तेन दुतेन सचिवे कृते / लक्ष्मसेननृपो मम्लो बौद्धधर्मस्य दूषणात् // 81 / / तदाहूतस्ततो वेगादागाद्रक्तपटो गुरुः / दूतस्याद्वादवाद्वौं सोऽप्यगमत्सक्तुमु. ष्ठिताम् // 82 // स्वधर्मदृषणात्तस्माद्राजा पितृवधादिव / दूताय सूरराजायाऽप्यकुप्यत्वैरमावहन् / / 8 / / ततस्तमर्द्धचन्द्राद्यैर्धर्षयित्वा | स दुःसहैः / निःकास्य चाशु तत्पृष्ठे कृतान्त इव भीषणः / / 84 // स्वदूतं चण्डवेगाख्यं निसृष्टार्थमथादिशत् / प्राप्तः सोऽपि तदा| देशहस्तः सूरपुरी जवात् // 85 / / यु० // प्राप्तं तदने स्वं दूतं धर्षितं प्रेक्ष्य तं तथा / वृत्तान्तं निखिल श्रुत्वा तन्मुखात्सूरभूपतिः॥ | // 86 // इति दध्यावहो दृष्टिरागः श्रीलक्ष्मभूपतेः / अविध्याप्यस्य वैराग्नेर्ययौ जन्मनि हेतुताम् // 87 // कथं कथं प्रशाम्योऽयं वैरानिर्वाडवाग्निवत् / जाज्वल्यमानो हृदयादुत्थितोऽस्याम्बुधेरिव / / 88 // अधिको वा ततोप्येष जन्मस्थानमपोह्य यत् / गर्जत्यभ्राग्निवजातक्षमाभृद्दाहदोहदः / / 89 / / इति ध्यायत एवाऽस्य सदः स्वान्तं च कम्पयन् / स्वस्वामिवलतश्चण्डश्चण्डवेगः समागमत् // 90 // सोऽपि श्रीलक्ष्मसेनस्यादेशमर्पयितुं पुरः / सिन्दुरव्याजतो व्यक्तसंक्रान्तक्रोधपावकम् // 11 // दधे दक्षिणहस्तन यावत्तावद् झटित्यमुम् / उत्थाय वामहस्तेन सान्धिविग्रहिकोऽग्रहीत् // 92 // चण्डवेगोऽवदत् कोपकम्पमानोत्तराधरः / राजादेशं गृहीत्वैव भक्तिस्ते व्यञ्जिता प्रभौ // 93 / / परं चेञ्जीवितेनार्थो राज्येन च धनेन च / आदेशं वाचयित्वा तत्तदर्थं कुरु भूपते ! / / 94 // युग्मम् / / राजाऽपि शूरो नाम्नैव धाम्ना सोमस्त्वऽभापत / मा ताम्य चण्ड ! शृणुमो राजादेशं वयं पुरः // 95 / / तेन भ्रूसंज्ञया ज्ञप्तः सान्धिविग्रहि सर्ग-१८ // 512 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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