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________________ श्रीअमम // 502 // कतिपयैः पुत्रमापृच्छयाथ नरेश्वरः / श्रीसम्मतिः परिव्रज्यां गृहीत्वा त्रिदिवं गमी // 59 / / अममोऽपि प्रभुः पित्रा मुक्तः खेदं | विधास्यति / चिन्तयिष्यति राज्यं तु स्वरूपं संसृतेर्विदन् // 60 // भक्तिनम्रत्रिलोकीन्द्रमौलिमालाचिंतांहिणा / पृथ्वी लोकद्वयात्तेन भ; पृथ्वी भविष्यति // 61 // रोगापमृत्युदुर्भिक्षदुर्वातातिहिमोष्णतः। भवित्री भी!ऽतिवृष्टेरवृष्टेश्चात्र राजनि // 62 // लोके न वारि सम्पत्तिः घनसम्पद्यपि श्रुता / सतामपि परा भूतिस्तत्र त्रातरि कौतुकम् / / 63 // इति यतिजनवन्दनावनत्या सुचतुरदृतिकयेव क्लप्तरागाम् / जिनपतिकमलामलं विलासैरममभवे पुरुषोत्तमः स भोक्ता // 64 // अममचरिते भाविन्येवं तयोः सहजन्मनोलघुरमम इत्युत्सर्पिण्यां भविष्यति भारते / जिनपरिवृढः प्रौढप्रीत्याचिंतांहियुगः सुरैविनयविटपी स्थाने क्लप्तः फलत्यथवा न किम् ? // 65 // इत्याचार्यश्रीमुनिरत्नविरचिते अममस्वामिचरिते महाकाव्ये षष्ठभवे भाविश्रीअममस्वामिच्यवन-जन्म-बाल्य-यौवनविवाह-यौवराज्य-राज्यमहोत्सववर्णनः सप्तदशमः सर्गः / / ग्रन्थानम् // 267 / / अष्टादशः सर्गः। जिनेशचरित्रम् / भोगावलीकर्मक्षये पुत्रस्य राज्ये स्थापना सर्ग-१८ अथो त्रिंशद्वर्षलक्ष्मी हरिणाक्षीमिव क्षितिम् / भुञ्जानस्य प्रभो गफलं कर्मान्तमेष्यति // 1 // विज्ञायाऽममराजोऽपि तद्ज्ञा| नेनात्मजं निजम् / स्वयं सप्रश्रयं राज्यमादातुमुपरोत्स्यति // 2 // नयी च विनयी चायमपि प्रतिवदिष्यति / कृतं राज्येन मे तात! | त्वद्भक्तेविनकारिणा // 3 // क्षमाभृतः पितुः पादसेविनां या नृणां भवेत् / पुन्नागता न गोंर्जा सा सिंहासनवर्तिनाम् // 4 // त्वत्पा // 502 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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