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________________ श्रीअमम // 484|| जिनेशचरित्रम् / अन्त्यसंघकथनम् दुःप्रसहसूरि स्वरूपं च प्यन्ति त्रयेऽप्येते मिथो द्वैषाद् भवाश्रयाः // 43 // कृते श्राद्धकुलानां तेऽप्यन्योन्यं युद्धमुद्धतम् / कर्त्तारो दुर्द्धराः कौटुम्बिकानामिव भूभुजः // 44 // बहुमोहाः सकषायास्तुच्छाः स्वेच्छाक्रियारताः / लिंगिन्य एव भाविन्यः श्रमण्यस्त्वार्यिकाः मिताः // 45 // निर्वा. | सना देवगुरुधर्मतत्त्वेष्वहंयवः / श्रावकाच भविष्यन्ति नामतो भावतोऽल्पकाः // 46 // परतप्तिः प्रतिक्रान्तिर्वदनं गुरुनिन्दनम् / ale स्वाध्यायो विकथायासं भाविन्यः श्राविकाश्च ताः // 47 // अवष्टम्भेन दुहितुर्वर्ण्यन्ते पितरोऽपि च / मंस्यते सधनं बन्धुं निर्द्धनं | सोदरोऽपि न // 48 // ज्ञानपात्रतया वाढं नीचानप्युत्तमो जनः / सर्वेभ्यो दर्शनस्थेभ्योऽधिकं गौरवयिष्यति // 49 // वेताल इव | कालेऽस्मिन्नित्थं दुष्टे प्रसर्पति / यः स्थिरो भविता धर्मे श्लाघ्यं तस्यैव जीवितम् // 50 // सूरि१ःप्रसहो नाम्ना फल्गुश्रीस्तु महत्तरा / | सुश्रावको नायलाख्यः सत्यश्रीः श्राविका परा // 51 // अमात्यः सुमुखो नाम्ना राजा विमलवाहनः / भविष्यन्ति भारतेऽमी दुःख| मायामपश्चिमाः // 52 // हस्तद्वितयमानांगास्ते विंशत्यब्दजीविताः / तुर्य न्यून षष्ठमुग्रं तपस्तेषां भविष्यति // 53 // दशकालिक भृत्सर्वपूर्वधारीव दास्यति / संघे बोधं मुनिस्तीर्थ यस्मादुःसहावधिः // 54 // वय॑त्यक ततो धर्म धमों नास्तीति वक्ति यः। | कर्तव्यः स बहिः संघादास्तिक स्तिकाग्रणीः // 55 / / गृहे स्थित्वा द्वादशाब्दीमष्टाब्दी संयमे पुनः कृत्वा दुःप्रसहोऽन्ते चाष्टम सौधर्ममाप्स्यति // 56 // चारित्रस्य व्यवच्छेदः पूर्वान्हे भविता ततः / राजस्थितेश्च मध्यान्हे परान्हे तु हविर्भुजः॥५७।। यास्यत्येवं दुःखमाब्दसहस्राण्येकविंशतिः / भविता तन्मितिः षष्ठारकोऽप्येकान्तदुःपमा // 28 // भावी नष्टे धर्मतत्त्वे हाहाभृतो जनोऽ| खिलः / मातृपुत्रादिमर्यादारहितः पशुवन्क्षितौ // 59 // भविष्यन्ति दिशो धूमान्धकारेण भयंकराः। बास्यन्त्यनिष्टा वाताश्च युनिश पांसुराः खराः // 60 // शीतांशुरधिकं शीतं स्रक्षत्युष्णं तथोष्णरुक् / क्लेशं लोकोऽतिशीतोष्णार्दितः प्राप्स्यति दुस्तरम् // 61 // तदा |सर्ग-१६ // 484 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
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