SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *** खबन्धूनां बन्धुवत्सल ! / स हि धुर्यः सतां सापराधे सानुग्रहोऽत्र यः॥५३।। कृष्णोऽपि वाष्पपूर्णाक्षः प्रोवाचेति पितृष्वसः / मद्ध-1* // 419 // न्धनां नापराधो देवमत्राऽपराध्यति // 54 // अपि दुन्दुर्विभाषेत त्वत्सुतास्ते तु नो मम / पीयूषाद् विषमुत्पेदे तत् किं ? भावीति मावाति कुन्तीविवेशि न // 55 // दक्षिणाब्धेस्तटे पाण्डुदेशे खां मथुरापुरीम् / नवां निवेश्य त्वत्पुत्राः संवसन्तु सुख चिरम् // 56 // श्रीहास्तिनपुरे ज्ञप्त्या कृष्ण | कृष्णोऽप्यभ्यपिश्चत्परीक्षितम् / अभिमन्योः सुतं पौत्रं सुभद्रायाः स्वसुः स्वयम् // 57 // इतश्चोग्रसेनसूनुर्नभःसेनो वृतस्तदा / धनसेनेन दत्तादेशेन कमलामेलां दत्वा निजां सुताम् // 58 // नारदश्च भ्रमन्नागानभःसेनस्य वेश्मनि / संनयता विवाहाय तेन नायमपूज्यत // 59 // तस्याऽनचिकीर्गेहे रामपौत्रस्य नैषधेः / ययौ सागरचन्द्रस्य शाम्बादीनां प्रियस्य सः // 60 // तेनाऽभ्युत्थाय सोऽभ्यर्च्य पृष्टश्चा गमन पाण्डवानां चर्यमाख्यत / कन्यकां कमलामेला तत्रैव धनसेनजाम् // 61 // नभःसेनाय सा दत्ताऽधुना योग्या पुनस्तव / इत्युक्त्वाऽन्यत्र सोऽयाal सीत सागरोऽस्यां त्वरज्यत // 62 // विकल्पवत्तिकान्यस्तां तां चेतःफलकेऽग्रतः / स्मरचित्रकृताऽभीष्टां ध्यायन्देवीमिव स्तुवन् // 63 // | | ईक्षांबभूव सकलः सकलं तन्मयं जगत् / शाक्तेयागमलीनात्मा सर्व शक्तिमयं यथा // 64 // युग्मम् / / नारदः कमलामेलागृहे प्राप्तस्तयाऽप्यसौ / सत्कृत्य कौतुकं पृष्ट इत्यभाषिष्ट दुष्टधीः // 65 // कौतुकद्वयमत्रैव पुर्यां दृष्टं मया शृणु / रूपेषु नभःसेनः सुरूपेषु तु सागरः // 66 // नभःसेने विरज्याऽऽशु सागरे सा त्वरज्यत / तद्राग सागरायाख्यत् गत्वा कुलगुरुः कले॥६७॥ सागरं कमलामे-1 लाविरहज्वरजर्जरम् / ज्ञात्वा माताऽन्ये कुमारा अप्यऽखिद्यन्त चेतसि // 68 // ध्यायतः कमलामेला सागरस्य च पृष्ठतः / स्थित्वा | शाम्बस्तदा प्राप्तः पाणिभ्यां लोचने प्यधात् // 69 // सागरे कमलामेला किं ? भवेदिति जल्पति / वत्साऽस्मि कमलामेल इति शाम्बो इसन्नवक् / / 70 // तहिं त्वमेव कमलां मेलयित्वा ममाऽधुना / सत्यवादी भवेस्तात नातस्त्वामर्थये परम् // 71 // तद्वाचं च // 419 //
SR No.600400
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1943
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy